आश्विन शुक्लपक्ष व्रत - अपराजिता पूजा

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


अपराजिता - पूजा

( निर्णयामृत ) -

आश्विन शुक्ल दशमीको प्रस्थान करनेके पहले अपराजिताका पूजन किया जाता है । उसके लिये अक्षतादिके अष्टदलपर मृत्तिकाकी मूर्ति स्थापन करके

' ॐ अपराजितायै नमः '

इससे अपराजिताका, ( उसके दक्षिण भागमें )

' ॐ क्रियाशक्त्यै नमः '

इससे जयाका, ( उसके वाम भागमें )

' ॐ उमायै नमः '

इससे विजयाका स्थापन करके आवाहनादि पूजन करे और

' चारुणा मुखपद्मेन विचित्रकनकोज्ज्वला । जया देवी भवे भक्ता सर्वकामान् ददातु मे ॥

काञ्चनेन विचित्रेण केयूरेण विभूषिता । जयप्रदा महामाया शिवभावितमानसा ॥

विजया च महाभागा ददातु विजयं मम । हारेण सुविचित्रेण भास्वत्कनकमेखला ।

अपराजिता रुद्ररता करोतु विजयं मम ॥'

इनसे जया - विजया और अपराजिताकी प्रार्थना करके हरिद्रासे रँगे हुए वस्त्रमें दूब और सरसों रखकर डोरा बनावे । फिर

' सदापराजिते यस्मात्त्वं लतासूत्तमा स्मृता । सर्वकामार्थसिद्धयर्थ तस्मात्त्वां धारयाम्यहम् ॥'

इस मन्त्नसे उसे अभिमन्त्नित करके - ' जयदे वरदे देवि दशम्यामपराजिते । धारयामि भुजे दक्षे जयलाभाभिवृद्धये ॥' से उक्त डोरेको दाहिने हाथमें धारण करे ।

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Last Updated : January 21, 2009

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