शान्तिपञ्चमी
( हेमाद्रि ) -
आश्विन शुक्ल पञ्चमीको प्रातःस्त्रानादिके पश्चात् वेदी या चौकीपर सफेद वस्त्र बिछाकर हरी और कोमल कुशके १२ नाग और एक इन्द्राणी बनाकर उसपर स्थापित करे । इन्द्राणीको जलसे और नागोंको घी, दूध और जल - तीनोंसे स्त्रान करावे । गन्ध - पुष्पादिसे पूजन करे और अनेक प्रकारके नागोंका ध्यान करके
' नागाः प्रीता भवन्तीह शान्तिमाप्रोति वै विभो । स शान्तिलोकमासाद्य मोदते शाश्वतीः समाः ॥'
से प्रार्थना करके
' ॐ कुरु कुल्ल्यं हुं फट् स्वाहा '
के १२ हजार जप करे । इस प्रकार उक्त कुश - निर्मित बारह नागोंमें आश्विनमे अनन्त, कार्तिकमें वासुकि, मार्गशीर्षमें शड्ख, पौषमें पद्म, माघमें कम्बल, फाल्गुनमें कर्कोटक, चैत्रमें अश्वतर, वैशाखमें शंखपाल, ज्येष्ठमें कालिय, आषाढ़में तक्षक, श्रावणमें पिंगल और भाद्रपदमें महानागका पूजन करे । इससे सर्पादिका भय दूर हो जाता है, सब प्रकारकी शान्ति बढ़ती है और उक्त मन्त्रसे सर्पविष रुक जाता है ।