महाष्टमी
( दुर्गोत्सवभक्तितरङ्गिणी, देवीपुराणादि ) -
आश्विनी शुक्ल अष्टमीको देवीकी उपासनाके अनेक अनुष्ठान होते हैं, इस कारण यह महाष्टमी मानी जाती है । इसमें सप्तमीका वेध वर्जित और नवमीका ग्राह्य होता है । इस दिन देवी शक्ति धारण करती हैं और नवमीको पूजा समाप्त होती है; अतएव सप्तमीवेधसंयुक्त महाष्टमीको पूजनादि करनेसे पुत्र, स्त्री और धनकी हानि होती है । यदि अष्टमी मूलयुक्त और नवमी पूर्वाषाढ़ायुक्त हो अथवा दोनोंसे युक्त हो तो वह महानवमी होती है । यदि सूर्योदयके समय अष्टमी और सूर्यास्तके समय नवमी हो और भौमवार हो तो यह योग अधिक श्रेष्ठ होता है । महाष्टमीके प्रातःकालमें पवित्र होकर भगवतीकी वस्त्र, शस्त्र, छत्र, चामर और राजचिह्नादिसहित पूजा करे । यदि उस समय भद्रा हो तो सायंकालके समय करे और अर्द्धरात्रिमें बलिप्रदान करे । कई स्थानोंमें इस दिन ' अखिलकारिणी ' ( खिलगानी ) देवीका पूजन किया जाता है । वह भद्रावर्जित सायंकाल या प्रातःकाल किसीमें भी किया जा सकता है । उसमें त्रिशूलमात्रकी पूजा होती है ।