महानवमी
( हेमाद्रि, देवीभागवत ) -
आश्विन शुक्ल नवमीको प्रातःस्त्रानादि नित्यकर्म शीघ्र समाप्त करके
' उपोष्य नवमीं त्वद्य यामेष्वष्टसु चण्डिके । तेन प्रीता भव त्वं भोः संसारात् त्राहि मां सदा ॥'
इस मन्त्रसे व्रत करनेकी भावना भगवतीके सम्मुख निवेदन करे । इसके बाद देवीपूजाके स्थानको ध्वजा, पताका, पुष्पमाला और बंदनवार आदिसे सुशोभित करके भगवतीका पञ्चदश, षोडश, षट्त्रींश या राजोपचारादिमेंसे जो उपलब्ध हो घृतपूर्ण बत्ती या कपूर जलाकर नीराजन करे । इस दिन धराधीशोंको चाहिये कि वे नवीन अश्वोंका पूजन करें । पूजाविधान आगे ( दशमीके शस्त्रपूजनमें ) दिया गया है । इस दिन पूर्व - विद्धा नवमी ली जाती है । यदि इसमें मूल, पूर्वा और उत्तराका ( त्रैलोक्यदुर्लभ ) सहयोग हो तो यह नवमी बड़े महत्त्वकी मानी जाती है । इसमें अनेक प्रकारके उपहारद्रव्योंसे पूजा की जाय तो महाफल होता है ।