सारस्वत n. एक ऋषि, जो दधीचि ऋषि का पुत्र था । दधीचि ऋषि की तपस्या को भंग करने के लिए इंद्र ने अलंबुषा नामक अप्सरा को भेज दिया । उसे देख कर दधीचि ऋषि का वीर्य सरस्वती नदी के किनारे स्खलित हुआ। आगे चल कर उसी वीर्य से सरस्वती नदी को एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसे सरस्वती नदी का पुत्र होने के कारण ‘सारस्वत’ नाम प्राप्त हुआ। दधीचि ऋषि के आत्मसमर्पण के पश्चात् लगातार बारह वर्षों तक भारतवर्ष में अकाल पड़ा। इस समय सरस्वती नदी के तट पर रहनेवाले बहुत सारे ऋषि अन्न के शोधार्थ इधर उधर घूमने लगे । केवल एक सारस्वत मात्र सरस्वती नदी के किनारे वेदाभ्यास करता हुआ रह गया । इस प्रकार देश के बाकी सारे ऋषियों ने वेदाभ्यास छोड़ कर मुसाफिर जीवन अपनाया था, उस समय इसने वेदाभ्यास की परंपरा जीवित रखी। अकाल के बारह वर्षों में यह नदी में प्राप्त मछलियों पर निर्वाह करता था । अकाल समाप्त होने पर सारे ऋषियों के मन में वेदाध्ययन करने की इच्छा उत्पन्न हुई। उस समय केवल सारस्वत के ही वेदविद्या पारंगत होने के कारण, समस्त ऋषिसमुदाय शिष्य के नाते इसके आश्रम में उपस्थित हुआ। इस प्रकार साठ हज़ार ऋषियों को इसने वेदविद्या सिखायी
[म. श. ५०] ।
सारस्वत n. आगे चल कर इसके आश्रम का स्थान ‘सारस्वत तीर्थ’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। उस स्थान को तुंगकारण्य नामान्तर भी प्राप्त था
[म. व. ८३.४३.५०] ।
सारस्वत n. तैत्तिरीय संहिता की दो अध्ययन पद्धति प्राचीनकाल में प्रचलित थी, जो ‘काण्डानुक्रमपाठ’ एवं ‘सारस्वतपाठ’ नाम से सुविख्यात थी । उनमें से ‘काण्डानुक्रमपद्धति’ का आज लोप हो चुका है एवं सारस्वत ऋषि के द्वारा प्राप्त ‘सारस्वतपाठ’ ही आज सर्वत्र प्रचलित है । सारस्वतपाठ की स्फूर्ति इसे किस प्रकार हुई इस संबंध में एक अख्यायिका ‘संस्काररत्नमाला’ में प्राप्त है । एक बार दुर्वास ऋषि के द्वारा दिये गये शाप के कारण सरस्वती नदी लुप्त हुई, एवं तत्पश्चात् मानवीय रूप धारण कर, आत्रेयवंशीय एक ब्राह्मण के घर अवतीर्ण हुई। पश्चात् उसी ब्राह्मण से सरस्वती नदी को सारस्वत नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। पश्चात् सरस्वती नदी ने इसे संपूर्ण वेदविद्या सिखायी, एवं इसे कुरुक्षेत्र में तप करने के लिए कहा। इसी तपस्या में तैत्तिरीय संहिता का एक स्वतंत्र क्रमपाठ इसे प्राप्त हुआ, जो आगे चल कर इसने अपने सारे शिष्यों को सिखाया । पश्चात् इसके इस पाठ को शास्त्रमान्यता एवं लोकमान्यता भी प्राप्त हुई
[संस्काररत्नमाला पृ. ३०२] ।
सारस्वत II. n. जैगीषव्य नामक शिवावतार का एक शिष्य
[वायु. २३.१३९] ।
सारस्वत III. n. भार्गव कुलोत्पन्न एक मंत्रकार एवं गोत्रकार ।
सारस्वत IV. n. स्वायंभुव मन्वन्तर का एक व्यास। यह ब्रह्मा का पौत्र एवं सरस्वती नदी का पुत्र था । इसे ‘अपांतरतम’, ‘वेदाचार्य’ एवं ‘प्राचीनगर्भ’ नामान्तर भी प्राप्त थे । इसने स्वायंभुव मन्वन्तर में वेदविभाजन का कार्य अत्यंत यशस्वी प्रकार से किया
[म. शां. ३३७.३७-३९,६६] ; व्यास पाराशर्य देखिये । अन्य पुराणों में इसे वैवस्वत मन्वन्तर का व्यास कहा गया है । इसे वसिष्ठ ऋषि ने वायुपुराण सिखाया था, जो इसने आगे चल कर अपने त्रिधामन् नामक शिष्य को प्रदान किया था
[वायु. १०३.६०] ।
सारस्वत V. n. एक आचार्य, जो कौशिक ऋषि के सात शिष्यों में से एक था
[अ. रा. ७] ।
सारस्वत VI. n. पश्चिम दिशा में निवास करनेवाला एक ऋषि, जो अत्रि ऋषि का पुत्र का था
[म. शां. २०१.३०] ।
सारस्वत VII. n. तुंगकारण्य में निवास करनेवाला एक ऋषि, जिसने अपने अनेकानेक शिष्यों को वेदविद्या सिखायी
[पद्म. स्व. ३९] ।
सारस्वत VIII. n. एक लोकसमूह, जो पश्चिम भारत में निवास करता था
[भा. १.१०.३४] ।