विरोचन n. एक राक्षससम्राट्, जो प्रह्लाद के तीन पुत्रों में से ज्येष्ठ था । सुविख्यात राक्षससम्राट् बलिवैरोचन का यह पिता था । सप्तपातालों में से पाँचवें पाताल में इसका अधिराज्य था । दैत्यों के द्वारा किये गये पृथ्वीदोहन के समय, यह ‘वत्स’ (बछडा) बना था
[म. द्रो. परि. १. क्र. ८. पंक्ति. ८०२] ।
विरोचन n. इसके पिता प्रह्लाद के न्यायनिष्ठुरता के संबंध में एक कथा महाभारत में प्राप्त है । एक बार केशिनी नामक सुंदर राजकन्या से यह एवं अंगिरस् ऋषि का पुत्र सुधन्वन् एकसाथ ही प्रेम करने लगे। उस समय केशिनी ने इन दोनों से कहा, ‘तुम दोनों में से जो अपने को श्रेष्ठ साबित करेगा, उससे मैं विवाह करूँगी’। श्रेष्ठता के संबंध में इसका एवं सुधन्वन् का काफ़ी वादविवाद हुआ। इंत में इस वाद का निर्णय करने के लिए, ये दोनों विरोचन के पिता असुरराज प्रह्लाद के पास गये। इनका यह भी तय हुआ कि, इनमें से जो श्रेष्ठ साबित होगा, उसका दूसरे के प्राणों पर अधिकार होगा। असुरराज प्रह्लाद इन दोनों की श्रेष्ठता के संबंध में कुछ भी निर्णय न दे सका, जिस कारण उसे कश्यप ऋषि की सलाह ली। उसीके कहने पर, प्रह्लाद ने अपने पुत्र की अपेक्षा सुधन्वन् को श्रेष्ठ ठहराया, एवं उसे कहा, ‘तुम विरोचन के प्राणों के मालिक हो, उसका जीवन तुम्हारी मुठ्ठी में है’। प्रह्लाद की यह अपत्यनिरपेक्ष न्यायप्रियता देख कर, सुधन्वन् अत्यधिक प्रसन्न हुआ, एवं उसने विरोचन का जीवन उसे वापर दे दिया, एवं इसे शतायु बनने का आशीर्वाद दिया
[म. स. ६१.५८-७९] ।
विरोचन n. छांदोग्य उपनिषद में इंद्र एवं विरोचन की आत्मज्ञान के संबंध में एक कथा प्राप्त है । एकबार देव एवं असुरों को ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने की इच्छा हुई, एवं इस हेतु वे प्रजापति के पास गये। उनके प्रश्र्न का उत्तर देते हुए प्रजापति ने उन्हें कहा, ‘पृथ्वी के निष्पाप, अजर, अमर, अकाम एवं संकल्परहित आद्य तत्त्व को आत्मा कहते कहते है’। तदुपरांत इसी आत्मा के सत्य स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कराने के हेतु देवों ने इंद्र को, एवं असुरों ने विरोचन को प्रजापति के पास शिष्य के नाते भेज दिया। ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के लिए इंद्र एवं विरोचन बत्तीस साल तक प्रजापति के पास रहे। फिर भी प्रजापति ने इनको ब्रह्मज्ञान न दिया, एवं इनकी परीक्षा लेने के लिए इनसे अनृत (असत्य) वचन कहे, ‘आँखों में, पानी में, आइने में अपनी जो परछाई नजर आती है, वही आत्मा है’। प्रजापति का यह अनृत कथन सत्य मान कर, विरोचन ने उत्तम स्नान किया, एवं उत्कृष्ट वस्त्र एवं अलंकार परिधान कर, अपनी परछाई का पानी में निरीक्षण किया। पश्र्चात् उसी परछाई को आत्मा मान कर, उसी तत्त्व का प्रचार यह अपने अनुगामियों में करने लगा। इसीके कारण, देह को ही अत्मा समझने वाले असुरों का ‘आसुरी सांप्रदाय’ निर्माण हुआ। यह सांप्रदाय देवों से संपूर्णतः विभिन्न था, जो शारीरिक एवं मानसिक बंधनों से अतीत, शुद्ध एवं स्वसंवेद्य आत्मतत्त्व को ही आत्मा मानते थे
[छां. उ. ८.७.२, ९.२] ; रक्षस् एवं देव देखिये ।
विरोचन n. देवासुरों के बीच संपन्न हुए ‘तारकामय युद्ध’ में असुरों के एक सेनादल का यह सेनापति था
[म.स. परि. १ क्र. २२ पंक्ति. ३६७] । इसी युद्ध में यह इंद्र के द्वारा मारा गया
[म. शां. ९९.४८] ;
[ब्रह्मांड. २.२०.३५] ;
[मत्स्य. १०.२१] ;
[पद्म. सृ. १३] । गणेश पुराण में इसकी मृत्यु की संबंध में एक कल्पनारम्य कथा दी गयी है । सूर्य के प्रसाद से इसे एक मुकुट प्राप्त हुआ था । उसके संबंध में शर्त थी कि, यह मुकुट किसी दूसरे के हाथों लग जायेगा, तो इसकी मृत्यु होगी। कालोपरांत इसके द्वारा देवों को अत्यधिक त्रस्त किये जाने पर, श्रीविष्णु ने स्त्रीरूप धारण कर इसे मोहित किया, एवं इसका मुकुट हस्तगत कर के इसका विनाश किया
[गणेश. २.२९] । नारदपुराण के अनुसार, श्रीविष्णु ने ब्राह्मणवेश धारण कर, इसकी धर्मनिष्ठ पत्नी विशालाक्षी का बुद्धिभ्रंश करवाया, एवं कपट से इसका वध किया
[नारद. २.३२] ।
विरोचन n. इसकी विशालाक्षी एवं देवी नामक दो पत्नीयाँ थी
[नारद. २.३२] ;
[भा. ६.१८.१६] । इनमें से देवी से इसे बलि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ
[म. आ. ५९.१९-२०] ;
[पद्म. सृ. ६] । इसकी कन्या का नाम यशोधरा था
[ब्रह्मांड. ३.१.८६] ; यशोधरा देखिये । इसके निम्नलिखित पाँच भाई थेः- कुंभ, निकुंभ, आयुष्मत्, शिबि एवंव बाष्कलि। इसकी बहन का नाम विरोचना था
[वायु. ८४.१९] । २.धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक । यह द्रौपदीस्वयंवर में उपस्थित था
[म. आ. १७७.२] । भारतीय-युद्ध में यह भीमसेन के द्वारा मारा गया। इसे ‘दुर्विरोचन’ एवं ‘दुर्विमोचन’ नामांतर भी प्राप्त थे ।