पंचजन n. वेदकालीन पॉंच प्रमुख ज्ञानियों का सामूहिक नाम
[ऐ. ब्रा.३.३१,४.२७] ;
[तै.सं.१.६.१.२] ;
[का.सं.५.६,१२.६] ऋग्वेद के प्रत्येक मंडल में ‘पंचजनों’ क उल्लेख मिलता हैः
पंचजन II. n. नरकासुर के परिवार में स्थित पॉंच राक्षसों का समूह । श्रीकृष्ण ने इनका वध किया (नरक देखिये) ।
पंचजन III. n. (सो. नील.) उत्तर पांचाल देश का सुविख्यत राजा । इसे ‘च्यवन’ नामांतर भी प्राप्त है । ऋग्वेद में इसका निर्दश ‘पिजवन’ नाम से किया गया प्रतीत होता है
[ऋ.७.१८.२२] ।’ पंचजन’ यह संभवतः ‘पिजविन’ का ही अपभ्रष्ट रुप होगा । अग्नि पुराण में, इसके नाम के लिये ‘पंचधनुष’ पाठभेद उपलब्ध है । यह सृंजय राजा का पुत्र था । इसका पुत्र सोमदत्त
[ब्रह्म १३.९८] ;
[ह.वं.१.३२.७७] ।
पंचजन IV. n. एक दैत्य । यय संह्राद नामक दैत्य का पुत्र था । यह शंख का रुप धारण कर समुद्र में रहता था । सांदीपनि ऋषि के मरे हुए पुत्र को, समुद्र में से वापस लाने के लिये श्रीकृष्ण समुद्र में गया । उस समय, उसने पंचजन का वध किया, एवं इसके अस्थियों से एक शंख बनाया । भगवान् श्रीकृष्ण का सुविख्यात ‘पांचजन्य’ शंख वही है
[भा.६.१८.१४,१०.४५.४०] ।
पंचजन V. n. एक प्रजापति । इसके ‘पांचजनी’ (असिक्नी) नामक एक कन्या थी । वह प्राचेतस दक्ष को पत्नी के रुप में दी गयी थी
[भा.६.४.५१] ।
पंचजन VI. n. कपिल ऋषि के शाप से बचे हुये सगर के चार पुत्रों में से एक
[पद्म. उ.२०] ;
[ब्रह्म. ८.६३] ।