सृंजय n. उत्तम मनु के पुत्रों में से एक ।
सृंजय (दैववात) n. सृंजय लोगों का एक राजा, जिसने तुर्वश एवं वृचीवन्त जाति के अपने शत्रुओं पर विजय किया था
[ऋ. ६.२७.७] । स्वयं इंद्र ने इसकी मदद कर तुर्वशों को इसके हाथ सौंपा दिया । देवत् का वंशज होने के कारण इसे ‘दैववात’ पैतृक नाम प्राप्त हुआ था
[ऋ. ४.१५.१] । इसके यज्ञाग्नि का निर्देश भी ऋग्वेद में प्राप्त है ।
सृंजय (पांचाल) n. (सो. नील.) पांचाल देश का एक राजा, जो विष्णु के अनुसार हर्यश्र्व राजा का, एवं वायु के अनुसार रिक्ष राजा का पुत्र था । भागवत एवं मत्स्य में इसे क्रमशः ‘संजय’ एवं ‘जय’ कहा गया है, एवं इसके पिता का नाम क्रमशः भर्म्याश्र्व एवं भद्राश्र्व दिया गया है ।
सृंजय (वैतहव्य) n. एक लोकसमूह, जो संभवतः सृंजय लोगों का ही नामान्तर था । भृगु ऋषि की हत्त्या करने के कारण, इन लोगों का नाश हुआ
[अ. वे. ५.१९.१] ।
सृंजय (वैशालि) n. (सू. दिष्ट.) एक राजा, जो वायु एवं विष्णु के अनुसार धूमाश्र्व राजा का पुत्र, एवं सहदेव राजा का पिता था
[वायु. ८.६.१९] ;
[विष्णु. ४.१.५३] । ब्रह्मांड में इसे धूम्राश्र्व राजा का पुत्र कहा गया है
[ब्रह्मांड. ३.६१.१४] । भागवत में इसे ‘संयम’ कहा गया है ।
सृंजय (शैब्य) n. एक राजा, जो शिबि राजा का पुत्र था । इसकी पत्नी का नाम कैकयी था, जिससे इसे सुवर्णष्ठीविन् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था । इसकी कन्या का नाम दमयंती (मदयंती) अथवा श्रीमती था, जिसका विवाह नारद से हुआ था (नारद. ३. देखिये) । इसके पुत्र सुवर्णष्ठीविन् की चोरों के द्वारा हत्त्या होने पर यह अत्यधिक शोक करने लगा। इस पर इसके दामाद नारद ने इसे सांत्वना देने के लिए सोलह श्रेष्ठ राजाओं (षोडश राजकीय) का एक आख्यान सुनाया, जिसमें मानवीय जीवन में मृत्यु की नित्यता, एवं तद्हेतु शोक करने का वैफल्य बहुत ही सुंदर प्रकार से विशद किया था
[म. द्रो. परि. १.८.३२५-८७२] ; सुवर्णष्ठिविन् एवं नारद २. देखिये । पश्चात् नारद ने इसके पुत्र सुवर्णष्ठीविन् को पुनः जीवित किया ।
सृंजय (होत्रवाहन) n. एक राजर्षि, जो काशिराज की कन्या अंबा का मातामह, एवं परशुराम का मित्र था । अंबा के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर यह अपने मित्र परशुराम के पास गया, एवं इसने उसे भीष्म से मिल कर उसका मन अंबा से विवाह करने के लिए अनुकुल बनाने के लिए प्रार्थना की
[म. उ. १७५.१५-२७, ३०] । पाण्डवों के वनवासकाल में इसने उनके साथ निवास किया था
[म. व. २७.२४] ।
सृंजय II. n. (सू. नाभाग.) एक राजा, जो विष्णु के अनुसार नाभाग राजा का पुत्र था ।
सृंजय III. n. (सो. अनु.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार कालनर राजा का पुत्र, एवं जनमेजय राजा का पिता था । वायु एवं मत्स्य में इसे क्रमशः ‘कालनल’ एवं ‘कोलाहल’ राजा का पुत्र कहा गया है । मत्स्य में इसका संजय नामान्तर प्राप्त है । यह प्रारंभ से ही कृष्ण का विरोधक था, जिसने इसको परास्त किया था ।
सृंजय IV. n. (सो. नील) एक राजा, जो पंचजन नामक राजा का पिता था
[ह. व. १.३२] । संभवतः सृंजय पांचाल एवं यह दोनों एक ही होंगे (सृंजय पांचाल देखिये) ।
सृंजय V. n. (सो. क्रोष्टु.) एक राजा, जो भागवत, मत्स्य एवं वायु के अनुसार शूर राजा का पुत्र, एवं धनु एवं वज्र नामक राजाओं का पिता था
[मत्स्य. ४६.३] । इसकी पत्नी का नाम राष्ट्रपाली था, जो कंस राजा की भगिनी थी । कई पुराणों में इसके पुत्रों के नाम कृश एवं दुर्मर्षण दिये गये है ।
सृंजय VI. n. क्षत्रवंशीय संजय राजा का नामांतर (संजय २. देखिये) ।
सृंजय VII. n. एक लोकसमूह, जो भारतीय युद्ध में पाण्डव पक्ष में शामिल था
[म. द्रो. ३४.५, ३९.१७] ।
सृंजय VII. n. इस साहित्य में इन लोगों का उल्लेख तुत्सु लोगों के साथ प्राप्त है, जहाँ तृत्सु राजा दिवोदास एवं सृंजय राजा की एकसाथ ही प्रशस्ति की गयी है, एवं उन दोनों को तुर्वशों के शत्रु बताये गये हैं
[ऋ. ६.२७.७] । शतपथ ब्राह्मण में भी देवभाग श्रौतर्षि को कुरु एवं सृंतय लोगों का पुरोहित बताया गया है
[श. ब्रा. २.४-५] । अथर्ववेद के अनुसार ये लोग कोई नैसर्गिक आपत्ति की शिकार बने थे, एवं इसी आपत्ति में इनके विनष्ट होने का अस्पष्ट निर्देश वहाँ प्राप्त है
[अ. वे. ५.१९.१] । काठक संहिता एवं तैत्तिरिय संहिता में भी इसकी तर्क की पुष्टि मिलती है, जहॉं किसी सांस्कारिक त्रुटि के कारण इनके विनष्ट होने का निर्देश प्राप्त है
[क. सं. १२.३] ;
[तै. सं. ६.६.२.२] ।
सृंजय VII. n. हिलेब्रांट के अनुसार सृंजय लोग दिवोदास के साथ सिंधु नदी के पश्चिम में कही निवास करते थे । कई अभ्यासक इन्हें युनानी ‘सेरांगै’ लोगों के साथ समीकृत करते है, एवं इनका आद्य निवासस्थान ड्रेन्जियाना में बताते है । त्सीमर के अनुसार ये लोग सिंधुघाटी के उपरि भाग में बसे हुए थे । इनके मित्र तृत्सुगण मध्य देश में स्थित थे, इस कारण इनके सिंधु नदी के पूर्व भाग में निवास करने की संभावना प्रतीत होती है ।
सृंजय VII. n. इन लोगों के द्वारा दुष्टरितु पौसायन नामक राजा को, एवं रेवोत्तरस् पाटव चाक्रस्थपति नामक अमात्य को अधिकारभ्रष्ट करने का निर्देश शतपथ ब्राह्मण में प्राप्त है
[श. ब्रा. १२.९.३.१] । आगे चल कर रेवोत्तरस् पाटव ने कुरु राजा बाह्लिक प्रातीप्य के विरोध के विपरित भी अपने राजा को पुनः एक बार राजगद्दी पर प्रतिष्ठापित किया । इन लोगों के राजाओं में, सृंजय दैववात, प्रस्तोक सृंजय
[ऋ. ६.४७.२२] ; वीहव्य सृंजय; साहदेव्य सोमक
[ऋ. ४.१५.७] ;
[ऐ. ब्रा. ७.३४.९] ; एवं साहदेव्य सोमक के पिता सहदेव (सुप्लन्) सार्ञ्जय
[ऐ. ब्रा. ७.३४.९] का निर्देश विशेष प्रमुखता से पाया जाता है । इनमें से अंतिम दो राजाओं को पर्वत एवं नारद ने राज्याभिषेक किया था ।