असमंजस् n. (सू. इ.) सगर को केशिनी नामक स्त्री से उत्पन्न पुत्र
[भा.९.८.१५] ;
[ह. वं. १.१५] ;
[विष्णु.४.४.३] ;
[ब्रह्म.८.७३] ;
[वायु.८८.१५९] ;
[नारद. ८.६८] ;
[वा.रा.बा.३८] । यह शैब्या का पुत्र था
[म.व.१०६.१०] । यह भानुमती का पुत्र था
[मत्स्य. १३.९४] ;
[पद्म. सृ.८] । पूर्वजन्म में यह योगी था, तथापि कुसंगति से योगभ्रष्ट हो गया । पूर्वजन्म का स्मरण होने के कारण, इसे कुसंगति के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई । पुनः कुसंगति प्राप्त न हो, इस भय से इसने अपना व्यवहार असमंजसता का रखा । इस के शरीर में पिशाच का संचार होने से यह ऐसा व्यवहार करता था
[ब्रह्मांड. ३.५१] । ऐसे वर्तन के कारण, लोक त्रस्त हो कर दूर ही रहें, ऐसा इसका उद्देश्य रहता था । इस लिये यह लोगों के बच्चों को सरयू नदी में डुबो देता था । तब लोगों ने सगर के पास इसकी शिकायत की । इसलिये राजा ने इसे घर से बाहर निकाला । तब यह वन में चला गया, किन्तु जाते समय डुबोये हुए सब बच्चों को इसनें योगसामर्थ्य से जीवित कर, लोगों को वापस कर दिया । तब नागरिकों को आश्चर्य लगा, तथा राजा को अत्यंत पश्चात्ताप हुआ
[भा.९.८.१४-१९] ;
[म.व.१०७] ;
[ब्रह्म.७८.४०-४३] । दशरथ, कैकेयी तथा सिद्धार्थ नामक प्रधान के संवाद में इसका उल्लेख है
[वा.रा.बा.३६] । इसका पुत्र अंशुमत्। असमंजस् को पंचजन नामांतर था
[ह. वं. १.१५] ;
[ब्रह्म.८.७३] ।