कुंभकर्ण n. रावण का छोटा भाई । वैवस्वत मन्वंतर में, पुलस्त्यपुत्र विश्रवा ऋषि को कैकसी से उत्पन्न चार पुत्रों में दूसरा । भागवत के मत में, केशिनी इस की माता थीं। इसने जन्मते ही हजारों लोगों को खा डाला । तब इसकी शिकायत ले कर लोग इंद्र के पास गये । इंद्र ने क्रोधित हो कर इस पर वज्र फेंका । कुंभकर्ण हथ पैर पटक कर और भी गर्जना करने लगा । इस कारण लोगों को अधिक कष्ट होने लगे । इसने ऐरावत का एक दांत उखाडकर इंद्र पर फेंका, तथा इंद्र को रक्तरंजित कर दिया । ब्रह्मदेव को इस बात का पता चला । तब उन्होंने लोकसंरक्षणार्थ इसे सदा निद्रित रहने का शाप दिया । रावण की प्रार्थना पर, इसे छः माहों में एक दिन जागने का ब्रह्म ने उःशाप दिया
[वा.रा.यु.६१] । कुबेर की बराबरी करने के लिये, रावणादि के साथ इसने भी गोकर्णक्षेत्र में दस हजर वर्षो तक तपस्या की । जब ब्रह्मदेव इसे वरदान देने लगे, तो देवों ने विरोध किया । देवों ने कहा, इसने नंदनवन के सात अप्सरायें, इन्द्र के दस सेवक, उसी प्रकार अन्य कई लोग तथा ऋषियों का भक्षण किया है । इसलिये इसे वर मत दो । देवों की इच्छा सफल हों, इसलिये ब्रह्मदेव ने सरस्वती को बुलाया तथा उसकेद्वारा कुंभकर्ण को उपदेश करवाया । तब इसने दीर्घकालीन निद्रा मांगी । ब्रह्मदेव ‘तथास्तु’ कह कर चला गया । पीछे यह पछताने लगा, परंतु उसका कुछ लाभ नही हुआ
[वा.रा.उ.१०] । कुबेर की लंका रावण ने छीन ली । तब रावण के साथ यह भी लंका में गया । वहॉं जाने पर विरोचनपुत्र बलि की पौत्री वज्रज्वाला से इसका विवाह हुआ
[वा.रा.उ. १२] । रावण ने अपने निद्राप्रिय बंधु के सोने की उत्कृष्ट व्यवस्था कर रखी थी । उसने विश्वकर्मा से चार कोस चौडा तथा आठ कोस लंबा एक सुंदर घर बनवाया । वहॉं यह सदैव निद्रिस्त पडा रहता था
[वा.रा.उ.१३] । जागृत रहने पर, यह सभा में भी आता था । युद्ध होने के पहले बुलाई गई एक सभा में यह उपस्थित था । वहॉं सीताहरण के लिये इसने रावण का दोष दिया । फिर भी रावण से इसने कहा, “मैं भविष्य में सब प्रकार से तुम्हारी सहायता करुंगा
[वा.रा.यु.१२] । तदनंतर अनेक योद्धाओं की मृत्यु के बाद, रावण अकेला ही राम से युद्ध कर रहा था । तब रावण का पराभव हुआ । रणांगण से वापस आने के बाद उसे अपने बंधु का स्मरण हुआ । उसने यूपाक्ष को कुंभकर्ण को जागृत करने के लिये भेजा । युद्ध के संबंध में प्राथमिक चर्चायें जिस सभा में हुई, वहॉं कुंभकर्ण उपस्थित था । तब से जो कुंभकर्ण सोया था, वह नौ महीने हो जाने पर भी सोया ही रहा । इसे जागृत करने लिये आये हुए लोगों ने, यह जागृत होते ही खाने के लिये मृग, महिष तथा वराह के बडे बडे ढेर इसके द्वार के पास रच दिये । अन्न की ढेरियॉं तैय्यार की । रक्त, मांस तैय्यार किया । चन्दन का लेप इसके शरीर को लगाया । सुगंधित द्रव्य सुंघाये । भयंकर आवाज की । फिर भी कुछ परिणाम नहीं हुआ । तब इसके वक्षस्थल पर प्रहार करना प्रारंभ किया । इसके कान में पानी डालना, काट खाना आदि प्रयत्न हुए । जब इसके शरीर पर हजार हाथी घुमाये, तब कहीं यह जागृत हुआ । जम्हाई की । धीरे से लोगों ने सारी वृत्त इसे कथन किया । तब यह तुरंत युद्ध करने कें लिये ही निकला । परंतु महोदर ने सुझाया कि, पहिले रावण की सलाह ले कर, फिर युद्ध के लिये जाना अधिक योग्य रहेगा । तब यह बंधु के पास गया । वहॉं इसने प्रथम रावण को ही उपदेश की चार बाते सुनायीं । परंतु रावण को यह उपदेश पसंद नहीं आया । तब रावण खुश हो, ऐसी बातें कहने का प्रारंभ इसने किया । महोदर ने सुझाया कि, यदि रावण की मृत्यु हो गई है, यों अफवाएं चारों ओर फैला दी, तो सीता स्वयं ही शरण आ जावेगी । तब कुंभवर्ण ने इस मार्ग का तिरस्कार किया तथा युद्ध का पुरस्कार किया । ये रणांगण में दाखल हुआ । इसका प्रचंड शरीर देख कर बंदरसेना भयभीत हो कर भागने लगी । परंतु सब को धीरज दे कर, अंगद ने एकत्रित किया । प्रथम इसने शूल से हनूमान को आहत किया । तब अपनी सेना कों नील ने धीरज बँधाया । ऋषभ, शरभ, नील तथा गवाक्ष को कुंभकर्ण ने खून की उलटी करवाई । बंदरों से भरे वृक्ष के समान कुंभकर्ण का शरीर दिखने लगा । कुंभकर्ण के द्वारा फेंका गया शूल अंगद ने बडी युक्ति से बचा लिया, तथा इसकी छाती पर प्रहार कर, इसे मूर्च्छित किया । होश में आते ही, अंगद को कुंभकर्न ने वेहोश किया । सुग्रीव को लेकर यह लंका की ओर चला गया । तब सुग्रीव ने इसके नाक, कान तोड दिये तथा वह राम के पास लौट आया । उस विद्रूप स्थिति में भी, यह लौट आया तथा इसने भयंकर युद्ध किया । अन्त में राम तथा लक्ष्मण के साथ युद्ध करते समय अर्धचन्द्र बाण से राम से इसके पैर तोड दिये । तब इसका भयंकर शरीर भूमि पर गिर पडा । फिर भी मुँह फैला कर राम की ओर सरकते हुए आने का यह प्रयत्न कर ने लगा । तब ऐन्द्रबाण से राम ने इसका वध किया
[वा.रा.यु. ६०-६७] । रामायण के अनुसार इसका वध राम ने किया । परंतु महाभारत के अनुसार लक्ष्मण ने किया
[म.व.२७१-१७] । इसका शरीर गिरने से लंका के अनेक गोपुर भग्न हो गये
[म.व.२८६-८७] । इसे कुंभनिकुंभ नामक दो बलाढय पुत्र थे ।