एक रेखामें क्लेश, दो रेखामें धनहानि, तीनमें क्लेश, चारमें समता, पांचमें क्षेम और आरोग्य, छः रेखामें धनलाभ, सातमें सम्पूर्ण सुख और आठ रेखामें सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध होता है । यदि रेखाके स्थानमें शुभग्रह और पापग्रह दोनों स्थित हों तो फल शुभही जानना और बिन्दुके स्थानमें हों तो दुःखदायक होते हैं । गोचरकालमें रेखा शुभ और बिन्दु अशुभ कहा है और समान हों तौ समफल जानना चाहिये । लक्ष्मी, भोग, विलास तथा सौख्य, देशका मालिक यह फल रेखाओंके स्थितिद्वारा क्रमसे कहे । मनुष्योंको बिन्दुओंकी स्थितिमें उद्वेग, हानि, रोग, मृत्यु क्रमसे कहे । जौन गोचरकालमें श्रेष्थ हो और अष्टमवर्गमें मध्यम हो और दशाविषे अधम हो वह ग्रह अधमाधम होता है ॥१-७॥
इत्यष्टवर्गफल ॥