पापग्रह चौथे स्थानमें स्थित होवै तो बाल्यावस्थामें माताको कष्टदायक होते हैं. यदि शुभग्रह स्थित हों तो सौख्यको करते हैं और राजसम्मानदायक जानना । जिसके बलवान् होकर पापग्रह लग्नसे चतुर्थभावमें स्थित हों और केन्द्र ( १।४।७।१० ) स्थानमें और ग्रह न हों तो उसकी माता मरजाती है । दूसरे और बारहवें यदि पापग्रह प्राप्त होवैं तो माताको और चौथे दशवें हों तो पिताको भय देते हैं । जिसके पापग्रहोंके बचिमें लग्न स्थित हो और चन्द्रमा पापयुक्त हो और शुभग्रह दूसरे स्थानमें नहीं तथा पापग्रह स्थित होवैं तो ऐसे योगमें उसकी माता सात दिनमें मा रजाती है ॥१-४॥
क्रूरग्रह चौथे स्थानमें माताको, दशवें पिताकी और सातवें स्थानमें स्त्रीको मारता है । शनैश्चर और मंगलके बीचमें सूर्य स्थित होते पिताको और मध्यमें चन्द्रमा स्थित हो तो माताको निःसन्देह मारता है । जिसके चन्द्रमासे आठवें पापग्रह स्थित हो और चन्द्रमा पापग्रहकरके युक्त हो तथा चन्द्रमाको बलवान् पापग्रह देखते हों तौ उसकी माता शीघ्रही मरजाती है । जिसके जन्मलग्नमें बृहस्पति दूसरे स्थानमें शनैश्चर और तीसरे स्थानमें राहु हो उसकी माता नहीं जीती है ॥५-८॥
जिसके सिंहराशिमें मंगल, तुलामें शनैश्चर अथवा कन्यामें शुक्र और मिथुनमें राहु हो तो उसकी माता नहीं जीती है । जिसके चन्द्रमा पापग्रहोंकरके युक्त हो अथवा पापग्रहोंके बीचमें हो और चन्द्रमासे सातवें पापग्रह स्थित हो तो उसकी माता मरजाती है । जिसके ग्यारहवें क्रूरग्रह हो और पांचवें शुक्र चन्द्रमा हो तो प्रथम कन्या उत्पन्न होती है और उसकी माताको कष्ट होता है । जिसके दूसरे अथवा धनमें राहु, बुध, शुक्र, शनैश्चर और सूर्य होवे तो वह बालक मातासहित मरजाता है ॥९-१२॥
जिसके नीचराशिमें चन्द्रमा शुक्र स्थित हो वह पापी और बडा क्रोधी होता है और उसकी माता नहीं जीती है । जिसके बारहवें छठे पापग्रह हों तों उसकी माताको और चौथे दशवें हो तौ उसके पिताको भय होता है । जिसके तीसरे सातवें सूर्य हो और जन्मलग्नमें मंगल हो तौ उसकी माता एकवर्ष बल्कि दो पलभी नहीं जीती है । जिसके लग्नमें बारहवें पापग्रह स्थित हो और क्रूरग्रहकी दृष्टि हो तो वह बालक मातासहित मरजाता है ॥१३-१७॥