जिस नक्षत्रमें शुक्र होय तिसको आदि देकर चार नक्षत्र शिरमें स्थापित करै. कंठमें पांच, हदयमें तीन, मुखमें दो, बाहोमें सात, गुदामें तीन, जंघाओंमें तीन, पादोंमें दो इस प्रकार जन्मनक्षत्रतक गणना करै. शिरमें पडै तो राज्य, कंठमें धनवान्, हदयमें सौख्य, गुदामें शत्रुभय और जंघाओंमें पडै तो मीठा अन्न भोजन करनेवाला, पादमें सुखप्राप्ति होवै इस क्रमसे शुक्रचक्र जानना ॥१-३॥