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अध्याय ४ - रुचकयोगफल

मानसागरी - अध्याय ४ - रुचकयोगफल

मानसागरी - अध्याय ४ - सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे ज

बडी उमरवाला, निर्मलकांतिवाला, रुधिरबल अधिकवाला, साहसी, सिद्धियोंसहित, उत्तम भौंह और श्यामकेशवाला, जिसके हाथ पैर एक समान हों, मंत्रका जाननेवाला, उत्तम कीर्तिवाला, लाल श्यामता लिये स्वरुपवाला, शूर, शत्रुओंके बलको नाश करनेवाला, शंखकीसी गरदनवाला, महान् यशस्वी, क्रूर, मनुष्योंका भक्त, ब्राह्मण और गुरुसे नम्र रहनेवाला, दुर्बल जानु और जंघावाला होता है । हाथ पैरमें खट्वांग, पाश, वृष, धनुष, चक्र, वीणा ये चिह्न होते हैं । सीधी अंगुली, सलाह करनेमें चतुर, हजारों मनुष्योंमें नामी, मध्यम शरीर, चौडा मुख, सह्य, विंध्य, उज्जयनी देशोंका स्वामी, सत्तर वर्षकी उमरवाला, शस्त्र अग्निसे चिह्नित, रुचकयोगमें पैदा हुआ मनुष्य होता है एवं किसी देवताके स्थानमें मृत्युको प्राप्त होता है ॥१-३॥

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Last Updated : January 22, 2014

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