शुक्लैकादशी
( वराहपुराण ) -
कार्तिक शुक्ल एकादशी ' प्रबोधिनी ' के नामसे मानी जाती है । इसके निमित्त स्त्रान - दान और उपवास यथापूर्व किये जाते है । विशेषता यह है कि एक वेदीपर सोलह आर ( कोण या पत्ती ) का कमल बनाकर उसपर सागरोपम, जलपूर्ण, रत्नप्रयुक्त, मलयागिरिसे चर्चित, कण्ठप्रदेशमें नालसे आबद्ध और सुश्वेत वस्त्रसे हुए शङ्ख - चक्र - गदाधारी चतुर्भुज और शेषशायी भगवानकी सुवर्णानिर्मित्त मूर्ति स्थापित करके उसका
' सहस्त्रशीर्षा० '
आदि ऋचाओंसे अङ्गन्यासपूर्वक यथाविधि पूजन करे और रात्रिमें जागरण करके दूसरे दिनके प्रभातमें वेदपाठी पाँच ब्राह्मणोंको बुलाकर उक्त चार कलश चारको और योगेश्वर भगवानकी ( स्वर्णमयी ) मूर्ति पाँचवेंको देकर उनको भोजन करवाकर स्वयं भोजन करे तो गङ्गादि तीर्थों, सुवर्णादि दानों और भगवान् आदिकी पूजाके समान फल होता है ।