नवमीव्रत
( हेमाद्रि, देवीपुराण ) -
कार्तिक शुक्ल नवमीको व्रत, पूजा, तर्पण और अन्नादिका दान करनेसे अनन्त फल होता है । इसमें पूर्वाह्णव्यापिनी तिथि ली जाती है । यदि वह दो दिन हो या न हो तो
' अष्टम्या नवमी विद्धा कर्तव्या फलकाङक्षिणा । न कुर्यान्नवमीं तात दशम्या तु कदाचन ॥'
इस ब्रह्मवैवर्तके वचनके अनुसार पूर्वविद्धा लेनी चाहिये । इस दिनका किया हुआ पूजा - पाठ और दिया हुआ दान - पुण्य अक्षय हो जाता है, इस कारण इसका नाम ' अक्षयनवमी ' है । इस दिन गो, भू, हिरण्य और वस्त्राभूषणादिका दान किया जाय तो यथाभाग्य इन्द्रत्व, शूरत्व या नराधिपत्वकी प्राप्ति होती है और ब्रह्महत्या - जैसे महापाप मिट जाते हैं । यही ( कार्तिक शुक्ल नवमी ) ' धात्रीनवमी ' और ' कूष्माण्डनवमी ' भी है । अतः इस दिन प्रातःस्त्रानादि करके धात्रीवृक्ष ( आँवला ) के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर ' ॐ धात्र्यै नमः ' से उसका आवाहनादि ' षोडशोपचार ' अथवा स्त्रानगन्धादि ' पञ्चोपचार ' पूजन करके
' पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिणः । ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः ॥
आब्रह्मस्तम्बपर्यत्नं देवर्षिपितृमानवाः । ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः ॥'
इन मन्त्नोंसे उसके मूलमें दूधकी धारा गिराये, फिर
' दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नमः । सूत्रेणानेन बध्रामि धात्रि देवि नमोऽस्तु ते ॥'
इस मन्त्नसे उसको सूत्रसे आवेष्टित करे ( सूत लपेटे ) और कर्पूर या घृतपूर्ण बत्तीसे नीराजन करके
' यानि कानि च पापनि०'
से परिक्रमा करे । ...... तदनन्तर सुपक्क कूष्माण्ड ( अच्छा पका हुआ कोहला - कुम्हड़ा ) लेकर उसके अंदर
' कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा । दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च ॥'
से प्रार्थना करे और दानपात्र ब्राह्मणके तिलक करके
' ममाखिलपापक्षयपूर्वकसुखसौभाग्यादीनामुत्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डदानं करिष्ये ।'
यह संकल्प करके ब्राह्मणको दे दे ।