उरध मुख भाठी, अवटौं कौनी भाँति ।
अर्ध उर्ध दोउ जोग लगायो, गगन-मँडल भयो माठ ॥
गुरु दियो ज्ञान, ध्यान हम पायो, कर करनी कर ठाट ।
हरिके मद मतवाल रहत है, चलत उबटकी बाट ॥
आपा उलटिके अमी चुबाओ, तिरबेनीके घाट ।
प्रेम-पियाला श्रुति भरि पीवो, देखो उलटी बाट ॥
पाँच तत्त इक जोति समाने, धर छहवो मन हाथ ।
कह 'यारी' सुनियों भाइ संतो, छकि-छकि रहि भयो मात ॥