हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|यारी साहब| गुरुके चरनकी रज लैके , दो... यारी साहब बिरहिनी मंदिर दियना बार ... बिन बंदगी इस आलममें , खान... दिन दिन प्रीति अधिक मोहि ... दोउ मूँदके नैन अन्दर , दे... हमारे एक अलह प्रिय प्यारा... गुरुके चरनकी रज लैके , दो... हौं तो खेलौं पियासँग होरी... झिलमिल -झिलमिल बरसै नूरा ... रसना , राम कहत तैं थाको ।... निर्गुन चुनरी निर्बान , क... आरति करो मन आरति करो । ग... जोगी जुगति जोग कमाव । सु... मन मेरो सदा खेलै नटबाजी ,... मन ग्वालिया , सत सुकृत तत... चंद तिलक दिये सुंदर नारी ... तू ब्रह्म चीन्हो रे ब्रह्... उरध मुख भाठी , अवटौं कौनी... राम रमझानी यारी जीवके ॥ ... सतगुरु है सत पुरुष अकेला ... सुन्नके मिकाममें बेचूनक... उड रे उड बिहंगम चढु ... गयो सो गयो बहुरि नहिं... एक कहो सो अनेक ह्वै ... देखु बिचारि हिये अपने नर ... आँखी सेती जो भी देखिये , ... जहँ मूल न डार न पत है रे ... जबलग खोजै चला जावै , तबलग... अंधा पूछे आफताबको रे उसे ... हम तो एक हुबाब हैं रे , स... आबके बीच निमक जैसे , सबलो... गगन गुफामें बैठिके रे , उ... गगन -गुफामें बैठिके रे , ... भजन - गुरुके चरनकी रज लैके , दो... हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है। Tags : bhajanyari sahabभजनयारी साहब राग आसावरी - ताल कहरवा Translation - भाषांतर गुरुके चरनकी रज लैके, दोउ नैननके बिन अंजन दीया । तिमिर मेटि उँजियार हुआ, निरंकार पियाको देख लीया ॥ कोटि सूरज तहँ छिपे घने, तीन लोक-धनी धन पाइ पीया । सतगुरुने जो करी किरपा, मरिके 'यारी' जुग-जुग जीया ॥ N/A References : N/A Last Updated : December 25, 2007 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP