सुदक्षिण n. पांडवपक्ष का एक राजा, जिसे द्रोणाचार्य वध कर रथ के नीचे गिरा दिया था
[म. द्रो. २०.४४] ।
सुदक्षिण (क्षैमि) n. एक आचार्य, जिसक तिरस्कृत मान कर एक यज्ञसमारोह से निकाल दिया था । पश्चात् इसके स्थान पर, शुक्र एवं गोश्रु जाबालि नामक आचार्यों की उस यज्ञ में नियुक्ति की गयी थी
[जै. उ. ब्रा. ३.६.३, ७.१.३-६] ।
सुदक्षिण (कांबोज) n. एक राजा, जो कांबोज (काबुल) देश का अधिपति था । महाभारत में इसका निर्देश ‘कांबोजाधिपति’
[म. आ. १७७.१५] , एवं ‘कांबोज’
[म. स. २४.२२] नाम से किया गया है । महाभारत में अन्यत्र इसे शक एवं यवन लोगों का राजा कहा गया है
[म. उ. १९.२१] । युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, अर्जुन ने अपने पश्चिम दिग्विजय में इसे जीता था
[म. स. २४.२२] । भारतीय युद्ध में यह कौरवों के पक्ष में शामिल था, एवं उस पक्ष के उत्कृष्ट रथियों में इसकी गणना की जाती थी
[म. उ. १६३.१] । इस युद्ध में सहदेवपुत्र श्रुतवर्मन् के साथ इसका घमासान युद्ध हुआ था
[म. भी. ४३.६४] । अन्त में अर्जुन ने इसका एवं इसके छोटे भाई का वध किया
[म. द्रो. ६७-६८] ;
[क. ४०.१०५] । इसके मृत शरीर को देख कर इसकी पत्नी ने अत्यधिक विलाप किया
[म. स्त्री. २५.१.५] ।
सुदक्षिण (काशिराज) n. एक राजा, जो पौंड्रक वायुदेव के साथ कृष्ण का शत्रुत्त्व करनेवाले काशिराज का पुत्र था । इसके पिता का कृष्ण के द्वारा वध किये जाने पर, इसने अपने पिता का बदला लेने के लिए कृष्ण का वध करने की घोर प्रतिज्ञा की, एवं तत्प्रीत्यर्थ वारावणसी क्षेत्र में शिव की तपस्या प्रारंभ की। इसकी तपस्या से प्रसन्न हो कर, शिव ने इसे जारणमारण की अधिष्ठात्री देवी दक्षिणाग्नि की आराधना करने का आदेश दिया । शिव के उपर्युक्त आदेशानुसार, इसने अपने ऋत्विजों के साथ दाक्षिणाग्नि की आराधना प्रारंभ की । इस आराधना के कारण इसके यज्ञकुण्ड से एक महाभयंकर ‘अभिचार’ अग्नि बाहर निकली, एवं दशदिशाओं को जलाती हुयी द्वाराका नगरी में पहुँच गयी। अक्षक्रीड़ा में निमग्न हुए कृष्ण को वह जलानेवाली ही थी कि, कृष्ण ने अपना सुदर्शनचक्र छोड़ कर उस अग्नि को लौटा दिया । पश्चात् उस अग्नि वे वाराणसी की ओर पुरः एक बार मुड़ कर, इसे एवं इसके ऋत्विजों को जला कर भस्म कर दिया
[भा. १०.६६२७-४२] ।
सुदक्षिण II. n. कामरूप देश का एक शिवभक्त राजा, जिसका रक्षण करने के लिए भीमाशंकर ने भीमासुर का वध किया था
[शिव. शत. ४२.१९] ।