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पौंड्रक

   
Script: Devanagari

पौंड्रक     

पौंड्रक (मत्स्य.क) n.  एक क्षत्रिय राजा, जो दनायु के बलवीर नामक दैत्यपुत्र के अंश से उत्पन्न हुआ था [म.आ.६१.४१] । भारतीय युद्ध में यह दुर्योधन के पक्ष में शामिल था ।
पौंड्रक (वासुदेव) n.  पुंड्र, कुरुष एवं वंग देशों का राजा जो जरासंध के पक्ष में शामिल था [म.स.१३.१९] । इसके पिता का नाम वासुदेव था [म.आ.१७७.१२] । पुंड्र देश का राजा होने से इसे पौंड्रक कहते थे । कृष्ण वसुदेव से विभिन्नता दर्शाने के लिये इसका पौंड्रक वासुदेव नाम प्रचलित हुआ था । चेदि देश में यह ‘पुरुषोत्तम’ नाम से सुविख्यात था । यह द्रौपदीस्वयंवर में उपस्थित था [म.आ.१७७.१२] । कौशिकी नदी की तट पर किरात, वंग, एवं पुंड्र देशों पर इसका स्वामित्व था । यह मुर्ख एवं अविचारी था । इस कारण यह स्वयं को परमात्मा वासुदेव कहलाने लगा, एवं भगवान कृष्ण का वेष परिधान करने लगा । युधिष्ठिर के राजसूर्य यज्ञ के समय इसने उसे करभार दे कर युधिष्ठिर का एवं भगवान् कृष्ण का सार्वभौमत्व मान्य किया था [म.स.२७.२०.२९२] । फिर भी इस युद्ध के पश्चात् बडी उन्मत्तता से भगवान कृष्ण को इसने संदेशा भेजा, ‘पृथ्वी के समस्त लोगों पर अनुग्रह कर उनका उद्धार करने के लिये, मैने वासुदेव नाम से अवतार लिया हैं । भगवान् वासुदेव का नाम एवं वेषधारण करने का अधिकार केबल मेरा है । इन चिह्रोंपर तेरा कोई भी अधिकार नहीं है । तुम इन चिह्रों को एवं नाम को तुरन्त ही छोड दो, वरना युद्ध के लिये तैयार हो जाओ ।’; इसकी यह उन्मत्त वाणी सुनकर, कृष्ण अत्यंत क्रुद्ध हुआ, एवं उसने इसे प्रत्युत्तर भेजा, ‘तेरा संपूर्ण विनाश करके, मैं तेरे सारे गर्व का परिहार शीघ्र ही करुंगा’। यह सुनकर, पौंड्रक कृष्ण के विरुद्ध युद्ध की तैयारी शुरु करने लगा । अपने मित्र काशीराज की सहायता प्राप्त करने के लिये यह काशीनगर गया । यह सुनते ही कृष्ण ने ससैन्य काशीदेश पर आक्रमण किया । कृष्ण आक्रमण कर रहा है यह देखक्र, पौंड्रक स्वयं दो अक्षौहिणी सेना लेकर बाहर निकला । काशीराज भी अक्षौहिणी सेना लेकर इसकी सहायता करने आया । युद्ध के समय पौंड्क ने शंख, चक्र, गदा, शार्ङ्ग धनुष, वनमाला, रेशमी पीतांबर, उत्तरीय वस्त्र, मौल्यवान् आभूषण आदि धारण किया था, एवं यह गरुड पर आरुढ था । इस नाटकीय ढंग से, युद्धभूमि में प्रविष्ट हुए इस ‘ नकली कृष्ण’ को देखकर भगवान कृष्ण को अत्यंत हसी आयी । पश्चात् इसका एवं इसके परिवार के लोगों का वध कर, कृष्ण द्वारका नगरी वापस गया । काशिषति के पुत्र सुदक्षिण ने अभिचार से कृष्णपर हमला किया, जिसे कृष्ण ने अभिचार से कृष्ण्पर हमला किया, जिसे कृष्ण ने पराजित किया [भा.१०.६६] । पद्मपुराण के अनुसार, पौंड्रक वासुदेव एवं इसके मित्र काशिराज, दोनों एक ही व्यक्ति थे, एवं इसका और कृष्ण का युध्द द्वारका नगरी में संपन्न हुआ था । इसने शंकर की घोर तपस्या कर, वरदान प्राप्त किया था, ‘ तुम कृष्ण के समान होंगे’ । युद्ध में कृष्ण ने इसका शिरच्छेद किया, एवं इसका सर काशी नगरी की ओर झोंक दिया । दण्डपाणि नामक इसके पुत्र ने एक कृत्या कृष्ण पर छोड दी । कृष्ण ने अपने सुदर्शनचक्र के द्वारा उस कृत्या एवं दण्डपाणि का वध किया, एवं काशीनगरी को जला कर भस्म कर दिया [पद्म. उ.२७८]

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