गाधि n. (सो.अमा.) वायुमतनुसार कुशाश्वपुत्र, भागवत तथा विष्णु मताअनुसार कुशांबुपुत्र । इसेही कौशिक कहते है । यह कान्यकुब्ज देश का अधिपति था । इसकी माता पुरुकुत्स की कन्या थी । इसे सत्यवती नामक कन्या थी । उसे ऋचीक ऋषि ने इससे मॉंगा । तब इसने उससे एक हजार श्यामकर्म घोडे ले कर, सत्यवती उसे दी । ऋचीक ऋषि ने दिय चरु के प्रभाव से, इसे विश्वामित्र नामक पुत्र हुआ ऋ.चीक देखिये;
[म.आ.१६५] ;
[व. ११५] ;
[म. शां ४९] ;
[म. अनु. ७. कुं] ;
[भा. ९.,१५.४,१६.२८] ;
[ह.वं. १.२७] ।
गाधि II. n. कोसल देश में रहनेवाला एक ब्राह्मण । यह श्रोत्रिय एवं बुद्धिमान् था । यह बचपन से ही विरक्त था । कुछ इष्टकार्य की सिद्धि के लिये, यह भाईयों को छोड कर तपस्या करने के लिये अरण्य में एक सरोवर के किनारे गया । विष्णुदर्शन होने तक पानी में तप करने का इसने निश्चय किया । दर्शन दे कर विष्णु ने इसे वर मॉंगने का कहा । इसने विष्णु से भ्रामक संसारमाया दिखलाने की प्रार्थना की । एक दिन स्नान करते समय, दर्भ हाथ में ले कर पानी मथना इसने प्रारंभ किया। तब इसे ऐसा दृश्य दिखा कि, जोरों का तूफान आने के कारण, एकादे वृक्ष के समान उसका शरीर नीचे गिर गया है । स्वजन रो रहे हैं, तथा शुष्क शरीर चिता में डाल कर जला डाला गया है । बाद में भूतमंडल देश की सीमा पर, एक ग्राम में, एक चांडाल स्त्री के उदर में गर्भवास की नरकयातना भोगते हुए इसने अपने को देखा । बाद में क्रमशः बढते बढते, यह विषयलोलुप बन गया । इसने चांडालकन्या से विवाह किया । वहॉं इसे संतति प्राप्त हो कर, यह वृद्ध हुआ । तदनंतर यह अरण्य में वास करने लगा । कुछ कालोपरांत, घर के लोगों की मृत्यु होना प्रारंभ हुआ । यह भ्रमिष्ट के समान वन में घूमने लगा । घूमते-घूमते यह कीर लोगों की राजधानी में आया । वहॉं के राजा की मृत्यु हो गई थी । हाथी ने इस चांडाल को सूँड से पकड कर गंडस्थल पर बैठाया । इसलिये लोगों ने इसे राजा बनाया । इस प्रकार गवल नाम से इसने आठ वर्षो तक कीर देश का राज्य चलाया । बाद में, नागरिकों को ज्ञान हुआ कि, अपना राजा चांडाल है । उन्हों ने अग्निप्रवेश किया । उनके दुख से, यह स्वयं भी अग्निप्रवेश करने को सिद्ध हो गया, तथा अग्निराशि पर गिर गया । इसके अवयव जलने लगे । इसी समय, सरोवर के जल में अघमर्षण करनेवाला गाधि ब्राह्मण, इस दीर्घस्वप्न से जागृत हुआ । चार घटिकाओं के बाद, इसका भवभ्रम नष्ट हुआ । स्वप्न की सब घटनाओं का स्मरण कर, ये विचार करने लगा । तदनंतर गाधि ने देढ साल तक तपस्या की । तब इसे दर्शन दे कर विष्णु ने बताया कि, तुमने देखी हुई सब घटनायें माया है । विष्णुवचन की सत्यासत्यता अजमाने के लिये, यह पुनः कीर देश में गया । विष्णुद्वारा इसका मोह निरसने होने के पश्चात्, यह जीवन्मुक्त हुआ
[यो.वा.५.४४.४९] ।