आपस्तंब n. भृगुकुलोत्पन्न एक ब्रह्मर्षि । यह तैत्तरीय शाखा का था । कश्यप ने दिति के द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया, उसमें यह आचार्य था । उसी दृष्टि से मरुद्नण उत्पन्न हुए
[मत्स्य.७] । उसकी स्त्री का नाम अक्षसूत्रा तथा पुत्र का नाम कर्कि
[ब्रह्म.१३०.२-३] । इसके रचित ग्रंथ १. आपस्तंबश्रौतसूत्र, २. आपस्तंबगृह्यसूत्र, ३. आपस्तंबब्राह्मण, ४. आपस्तंबमंत्रसंहिता, ५. आपस्तंबसंहिता, ६. आपस्तंबसूत्र, ७. आपस्तंबस्मृति, ८. आपस्तबोपनिषद्, ९. आपस्तंबाध्यात्मपटल, १०. आपस्तंबान्त्येष्टिप्रयोग, ११. आपस्तंबापरसूत्र, १२. आपस्तंबधर्मसूत्र (C.C.) । इसके, श्रौतसूत्रों में श्रौत, गृह्य, धर्म, शूल्व, मंत्रसंहिता आदि भाग हैं । इसका नाम याज्ञवल्क्य स्मृति में दिये गये स्मृतिकारों में है । तर्पण में इसका नाम बौधायन के पीछे तथा सत्याषाढ हिरण्यकेशी के पहले आता है । इससे पता चलता है कि इसकी शाखा हिरण्यकेशी शाखा के काफी पहले की होगी । आपस्तंब ने अपने धर्मसूत्र में
[आप. ध. २.७.१७.१७] । उदीच्य लोगों के एक श्राद्ध का उल्लेख किया है । उदीच्य शब्द का अर्थ हरदत्त ने शरावती नदी के उत्तर की ओर रहनेवाले लोग, ऐसा दिया है । आपस्तंब शरावती नदी के उत्तर की, ओर, आंध्र देश में रहता होगा । उसी प्रकार, ऐसा उल्लेख है कि, पल्हव राजाओं ने आपस्तंबी लोगों को काफी भेट (देन) दी (J.A.v 155) । इससे प्रतीत होता है कि, आंपस्तंबी शाखा आंध्र देश के आसपास निकली होगी । आपस्त्ब कल्पसूत्र के
[आप. ध. २८.२९] दो प्रश्न ही आपस्तंब धर्मसूत्र हैं । उसी प्रकार २५ तथा २६ इन दो प्रश्नों का एकत्रीकरण कर, उसे आपस्त्वीयमंत्रष्टाठ नाम दिया गया हैं । कल्पसूत्र के २७ वें प्रश्न को आपस्तंबगृह्यसूत्र यह नाम हैं । आपस्तंब के गृह्यसूत्र तथा धर्मसूत्र में काफी साम्य है । आपस्तंबधर्मसूत्र में आचार, प्रयश्चित, ब्रह्मचारी के कर्तव्य तथा उनके व्यवहार के नियम, यज्ञोपवीतधारण के संबंध में नियम, श्राध इ. इस संबंध में जानकारी दी गई है । उसी प्रकार वेदोके छः अंगो का भी विचार किया हैं । इसने सिद्ध किया है कि, कल्पसूत्र वेद न हो कर वेदांग ही है
[आप. धर्म. २.४.८१२] । ब्राह्मणग्रंथ नष्ट हो गये हैं । प्रयोग से, वैसे ब्राह्मणग्रंथ होने चाहिये ऐसा इसका कथन है
[आप. धर्म. १.४.१२-१०] आपस्तंब ने संहिता, ब्राह्मण तथा निरुक्त के कुछ उद्धरण लिये हैं । अपने धर्मसूत्र में कण्वपुष्करसादि दस धर्मशास्त्रकार, बौधायन एवं हारीत इनके भी मत इसने अनेक बार दिये हैं । संसार की उत्पत्ति तथा प्रलय के संबंध में भविष्यपुराण में दिये मत का आपस्तंब धर्मसूत्र में उल्लेख है तथा अनुशासन पर्व
[आप. ध. ९०.४६] का एक श्लोक इसने लिया है । आपस्तंब ने अपने धर्मसूत्रों में जैमिनि की पूर्वमीमांसा में से बहुत से मत एवं पारिभाषिक शब्दों का उपयोग किया है । आपस्तंब धर्मसूत्र का उल्लेख, शबर, ब्रह्मसूत्र के शांकरभाष्य, विश्वरुप का व्यवहार, मिताक्षरा एवं अपरार्क, इन ग्रंथो में किया गया है । आपस्तंबधर्मसूत्र के कितने ही मत पूर्ववती धर्मशास्त्रकारों के विरुद्ध है । आपस्तंब के मतानुसार नियोग त्याज्य है उसी प्रकार पसिशाच तथा प्राजापत्य इन दो विवाह विधियों को, इसकी पूर्ण सम्मति है । इसके मतानुसार किसी भी प्रकार के मांस का भक्षण करने में कोई आपत्ति नहीं है । आपस्तंब धर्मसूत्र पर हरदत्त ने उज्ज्वलावृत्ति नामक टीका की है । आपस्तंब धर्मसूत्र में अध्यात्म विषयक दो पटलों पर शंकराचार्य का भाष्य है
[आप. ध. १.८.२२-२३] । आपस्तंबधर्मसूत्र से भिन्न आपस्तंबस्मृति नामक २०७ श्लोकों का एक ग्रंथ, जीवानंद ने प्रकाशित किया हैं । आनंदाश्रम में प्रकाशित स्मृति में, दस अध्याय हैं । इस ग्रंथ में, प्रायश्चित्त पर विचार किया गया है । स्मृतीचंद्रिका तथा अपरार्क ग्रंथों में इसके उद्वरण कई बार आये हैं । स्मृतिचंद्रिका में स्तोत्रापस्तंब नामक एक ग्रंथ का उल्लेख हैं । बुल्हर ने इसका समय खि. पू. ३०० के पूर्व नहीं रहा होगा, ऐसा निश्चित किया हैं, परंतु तिलकंजी ने इसका समय इससे भी पहले का माना है
[गी. र. पृ. ५६१] । वैद्य ने आपस्तंबश्रौतसूत्र का समय खि. पू. १४२० निश्चित किया है, परंतु काणे खि. पृ. ६००-३०० मानते हैं ।