बौधायन n. कल्पसूत्रों का प्रवर्तक एक आचार्य, जो संभवतः कृष्ण यजुर्वेदशाखा का ऋषि था । इसके द्वारा विरचित ‘बौधायन धर्मसूत्र’ में कण्व बोधायन नामक पूर्वाचार्य का निर्देश प्राप्त है
[बौ.ध.२.५.२७] । संभव है, यह उसी कण्व बोधायन का पुत्र अथवा वंशज होगा । धर्मसूत्र का भाष्यकार गोविंदस्वामिन् के अनुसार, बौधायन को ‘काण्वायन’ नामान्तर प्राप्त है
[बौद. ध. १.३.१३.] । बौधायन धर्मसूत्र में इसके नाम के लिए ‘बोधायन’ एवं ‘बौधायन’ दोनो भी पाठ प्राप्त है । कई स्थानों में इसे ‘भगवान्’ बोधायन कहा गया है ।
बौधायन n. यह संभवतः दक्षिण भारत में स्थित कृष्णा नदी के मुहाने में स्थित प्रदेश में रहता होगा । बौधायन शाखा के ब्राह्मण आज भी उसी प्रदेश में अधिकतर दिखाई देते हैं । वेदों का सुविख्यात भाष्यकार सायणाचार्य स्वयं बौधायन शाखा का था । बौधायन शाखा के ब्राह्मणों को ‘प्रवचनकार शाखीय’ नामान्तर भी प्राप्त है । गृह्यसूत्रों में स्वयं बौधायन को भी ‘प्रवचनकर्ता’ कहा गया है । पल्लव राजा नंदिवर्मन् के ९ वी शताब्दी के अनेक शिलालेखों में ‘प्रवचनकार’ लोगों को दान देने का निर्देश प्राप्त है
[इन्डि. ऑन्टि. ८.२७३-२७४] । बौधायन के धर्मसूत्रों में भी दाक्षिणात्य लोगों के रीतिरिवाजों का निर्देश प्राप्त है ।
बौधायन n. बौधायन के द्वारा रचित बौधायन सूत्रों का संग्रह संपूर्ण अवस्था में अभी तक अप्राप्य है जैसे कि, आपस्तंब एवं हिरण्यकेशिन् आचार्यो का संग्रह किया गया है । डॉ. बनेंल के द्वारा बौधायन के बहुत सारे सूत्र छः विभागों में एकत्रित किये गये है, जो इस प्रकार हैः---(१) श्रौतसूत्र (१९ प्रश्न); (२) कर्मान्तसूत्र (२० प्रश्न); (३) द्वैधसूत्र (४ प्रश्न); (४) गृह्यसूत्र (४. प्रश्न); (५) धर्मसूत्र (४ प्रश्न); (६) शूल्बसूत्र (३ प्रश्न) ।
बौधायन n. डॉ. कालेण्ड के अनुसार बौधायन के सूत्र निम्नलिखित उन्चास प्रश्नों में विभाजित है, प्रश्नक्रमांक १-२१ प्रायश्चित्त श्रौतसूत्र; २२-२५ द्वैधसूत्र; २६-२८ कर्मान्तसूत्र; २९-३१ प्रायश्चित्त सूत्र; ३२ शूल्बसूत्र; ३३-३५ गृह्य्सूत्र; ३६ गृह्यप्रायश्चित्त; ३७ गृह्यपरिभाषा सूत्र; ३८-४१ गृह्य परिशिष्ट सूत्र; ४२-४४ पितृमेध सूत्र; ४५ प्रवरसूत्र; ४६-४९ धर्मसूत्र ।
बौधायन n. कालेन्ड के अनुसार, बौधायन का श्रौतसूत्र उपलब्ध श्रौतसूत्रों में प्राचीनतम है । उस सूत्रग्रंथ में ‘द्वैध’ एवं ‘कर्मान्त’ नामक दो स्वतंत्र अध्याय सम्मीलित है, जिनमें द्वैध अध्याय में तैत्तिरीय शाखा के बहुत सारे पूर्वाचार्यो के मत उद्धृत किये गये है । इस सूत्रग्रंथ का अंग्रेजी अनुवाद वैदिक संशोधक मंडल (पूना) के द्वारा प्रकाशित किये गये ‘श्रौतकोश’ नामक ग्रंथ में प्राप्त है ।
बौधायन n. कृष्ण यजुर्वेद के तीन प्रमुख आचार्यों में कान्व बोधायन, आपस्तंब, एवं हिरण्यकेशिन् ये तीन प्रमुख माने जाते हैं । उनमें से भी कण्व बोधायन प्राचीनतम था, एवं कृष्ण यजुर्वेदियों के ब्रह्मयज्ञांगतर्पण में उसका निर्देश बाकी दो आचार्यो के पहले किया जाता है । किन्तु जो ‘बौधायनधर्मसूत्र’ वर्तमान काल में उपलब्ध है, वह निश्चित रुप में आपस्तंब धर्मसूत्र के उत्तरकालीन है । यह प्रायः उपनिषदों से भी उत्तरकालीन है, क्यों कि, इसके धर्मसूत्र में छांदोग्य उपनिषदः से मिलताजुलता एक उद्धरण प्राप्त है । आपस्तंब की तुलना में बौधायन, गौतम एवं वसिष्ठ ये उत्तरकालीन धर्मसूत्रकार अधिक प्रगतिशील विचारों के प्रतीत होते है । नियोगजनित संतति आपस्तंब तिरस्करणीय मानता है
[आप.२.६.१३.१-९] । किन्तु गौतम, बौधायन एवं वसिष्ठ के द्वारा विशेष प्रसंगों में नियोग स्वीकार किया गया है । शबर के द्वारा लिखित धर्मशास्त्र का काल ५०० ई. के पूर्व का माना जाता है । शबर के काल में ‘बौधायनधर्मसूत्र’ एक सर्वमान्य एवं सन्मान्य धर्मग्रंथ माना जाता था । इससे प्रतीत होता है कि, बौधायन धर्मशास्त्र का रचना काल ईसा पूर्व ५००-२०० के बीच कही होगा । बौधायन के धर्मसूत्र में वसंत सम्पात की स्थिति वेदांगज्योतिष के अनुसार दी गयी हैं । उससे प्रतीत होता है कि, इसका काल ईसा शताब्दी के पूर्व लगभग १२०० होगा (कविचरित्र ) बौधायन धर्मसूत्र के प्रश्न चार विभाग में विभाजित है, एवं उसमें मुख्यतः निम्नलिखित विषयों का विवेचन किया हैः---चातुवर्ण्य में आवश्यक नित्याचार के नियम, पंचमहायज्ञ एवं अन्य यज्ञ यथासांग करने के लिए आवश्यक वस्तु, विवाह के नानाविध प्रकार, प्रायश्चित्त, नियोग संतति उत्पन्न करने के लिए आवश्यक नियम, श्राद्धविधि, प्राणायाम, अघमर्षण एवं जप आदि । बौधायन धर्मसूत्र में वेद, तैत्तिरीय संहिता, तैत्तिरीय ब्राह्मण, तैत्तिरीय आरण्यक, शतपथ ब्राह्मण, उपनिषदों, निदान आदि ग्रंथों से उद्धरण लिये गये हैं । ऋग्वेद के अघमर्षण एवं पुरुषसूक्त ये दोनो ही सूक्त बौधायन ने लिये हैं । उसी तरह बौधायन ने औपंजाघनि, कात्य, काश्यप प्रजापति आदि धर्मशास्त्रकारों का उल्लेख अपने ग्रंथों में किया है । शबर, कुमारिल, मेधातिथि आदि टीकाकारों ने बौधायन धर्मसूत्र का उल्लेख अपने ग्रंथों में किया है । उसी तरह विश्वरुप में, एवं मिताक्षरा में बौधायन के चौथे प्रश्न के अनेक सूत्र उद्धृत किये गये हैं । बौधायन धर्मसूत्र में गणेश की पूजा का निर्देश प्राप्त है, एवं उसमे गणेश के निम्नलिखित नामान्तर दिये गये हैः---विघ्न, विनायक, स्थूल, वरद, हस्तिमुख, वक्रतुंड, लंबोदर
[बौ.ध.२.५.२१] । उस ग्रंथ में रवि, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि आदि राशियों के ग्रहों का, तथा राहु एवं केतु ग्रहों का निर्देश प्राप्त है
[बौ. ध.२.५.२३] । विष्णु के बारह नाम भी उस ग्रंथ में दिय गये है
[बौ. ध.२.५.२४] । रंगभूमि पर अभिनय करना, एवं अभिनय सिखाना इन दोनो कार्यो की गणना बौधायन के द्वारा ‘उपपातको’ में की गयी है
[बौ. ध. २.१.४४] ।‘ दत्तकमीमांसा’ नाम ग्रंथ में बौधायन के ‘दत्तक’ संबंधी जो सारे उद्धरण लिये गये है, वे बौधायन धर्मसूत्र के न हो कर, बौधायन गृह्यशेषसूत्र में से लिये गये है (बौ. गृ.२.६) ।
बौधायन n. बर्नेल के अनुसार बौधायन श्रौतसूत्र का सर्वाधिक प्राचीन टीकाकार भवस्वामिन् था, जो ८ वीं शताब्दी में पैदा हुआ था । बौधायन धर्मसूत्र की अत्यधिक ख्यतिप्राप्त टीका गोविंदस्वामिन् के द्वारा विरचित है, किन्तु वह टीकाकार काफी उत्तरकालीन प्रतीत होता है ।
बौधायन n. आनंदाश्रम (पूना) के द्वारा प्रकाशित ‘स्मृतिसमुच्चय’ नामक ग्रंथ में, बौधायन के द्वारा विरचित एक स्मृति के हर एक अध्याय में तीन चार प्रश्न पूछे गये हैं, एवं उन प्रश्नों के उत्तर वहॉं दिये गये है ।
बौधायन II. n. एक आचार्य, जो ब्रह्मसूत्र का सुविख्यात ‘वृत्तिकार’ माना जाता है । रामानुजाचार्य के द्वारा लिखित ‘श्रीभाष्य’ बौधायन के ‘ब्रह्मसूत्रवृत्ति’ पर आधारिक्त है । इससे प्रतीत होता है कि, वृत्तिकार बौधायन स्वयं शंकराचार्य के काफी पहले का होगा । अनेक विद्वानों के अनुसार, यह द्रविड देश में पैदा हुआ था ।