वाजसनेयि , वाजसनेय n. याज्ञवल्क्य नामक सुविख्यात आचार्य का पैतृक नाम
[बृ. उ. ६.३.७, ५.३ काण्व] ;
[जै. ब्रा. २.७६] । इसकी शिष्यपरंपरा ‘वाजसनेयिन्’ नाम से सुविख्यात है
[अनुपद. सूत्र. ७.१२.८.१] , जिसमें याज्ञवल्क्य के पंद्रह शिष्य प्रमुख थे । एक शाखाप्रवर्तक आचार्य के नाते, याज्ञवल्क्य का निर्देश पाणिनि के अष्टाध्यायी में प्राप्त है (पाणिनि देखिये) ।
वाजसनेयि , वाजसनेय II. n. एक आचार्यसमूह, जो व्यास की यजुःशिष्य परंपरा में से याज्ञवल्क्य नामक आचार्य के पंद्रह शिष्यों से बना हुआ था । याज्ञवल्क्य ने सूर्य से यजुःसंहिता को प्राप्त किया था । आगे चल कर उसने उस संहिता के पंद्रह भाग किये, एवं वे अपने काण्व, माध्यंदिन आदि शिष्यों में बॉंट दिये। इसी कारण याज्ञवल्क्य के ये पंद्रह शिष्य ‘वाज-सनेय’ नाम से सुविख्यात हुए। याज्ञवल्क्य के ही कारण, शुक्लयजुर्वेदसंहिता ‘वाजसनेयि संहिता’ नाम से प्रसिद्ध हुई है ।