यम वैवस्वत n. समस्त प्राणियों का नियमन करने वाला एक देवता, जो मृत्युलोक का अधिष्ठाता माना जाता है । वैदिक ग्रंथों में इसे मृत व्यक्तियों को एकत्र करनेवाला, मृतकों को विश्रामस्थान प्रदान करनेवाला, एवं उनके लिए आवास निर्माण करनेवाला कहा गया है
[ऋ.१०.१४, १८] ;
[अ.वे.१८.२] । ऋग्वेद में इसे मृतकों पर शासन करनेवाला राजा कहा गया है
[ऋ.१०.१६] । इसके अश्व स्वर्ण नेत्रों तथा लौह खुरोंवाले हैं ।इसके पिता का नाम विवस्वत् था, एवं इसकी माता का नाम सरण्यु था
[ऋ.१०.१४,१७] ।
[ऋ.१०. १४.१ ५८.१, ६०.१०, १६४.२] । अथर्ववेद में इसे ‘विवस्वत्’ से भी श्रेष्ठ बताया गया है
[अ.वे. १८.२] । उपनिषदों में इसे देवता माना गया है
[बृ.उ.१.४.४.११,३.३.९.२१] ।
यम वैवस्वत n. इसे पहला मनुष्य कहा गया है
[अ.वे.८.३.१३] । इसे राजा भी कहा गया है
[कौ.उ.४.१५] ;
[ऋ.९.११३, १०.१४] । शतपथ में इसे दक्षिण का राजा माना गया है
[श.ब्रा.२.२.४.२] । ऋग्वेद के तीन सूक्तों में इसका निर्देश हुआ है
[ऋ.१०.१४.१३५, १५४] ।
यम वैवस्वत n. यम का निवासस्थान आकाश के दूरस्थ स्थानों में था
[ऋ.९.११३] । वाजसनेय संहिता में यम एवं उसकी बहन यमी को उच्चतम आकाश में रहनेवाले कहा गया हैं, जहॉं ये दोनों संगीत एवं वीणा के स्वरों से घिरे रहते हैं
[वा.सं.१२.६३] । ऋग्वेद में अन्यत्र इसका वासस्थान तीन द्युलोकों में सब से ऊँचा कहा गया है
[ऋ.१.३.५-६] ।
यम वैवस्वत n. यम के दूतों में दो श्वान प्रमुख थे, जो चार नेत्रोंवाले, चौडी नासिकावाले, शबल, उदुंबल (भूरे), एवं सरमा के पुत्र थे
[ऋ.१०.१४.१०] । ऋग्वेद में अन्यत्र ‘उलूक’ एवं ‘कपोत’ को भी यम के दूत कहा गया है
[ऋ.१०.१६५.४] ।
यम वैवस्वत n. यम के मित्रों में अग्नि प्रमुख है, जिसे यम का मित्र एवं पुरोहित कहा गया है
[ऋ.१०.२१,५२] । मृत लोगों को द्युलोक में ले जानेवाला अग्नि यम का मित्र होना स्वभाविक ही प्रतीत होता है । इसके अन्य मित्रों में वरुण एवं बृहस्पति प्रमुख थे, जिनके साथ यह आनंद पूर्वक निवास करता था । वैदिक साहित्य में अन्यत्र निम्नलिखित देवताओं को यम से समीकृत किया गया हैः---अग्नि
[तै.सं.३.३.८.३] ; वायु
[नि.१०.२०.२] ; एवं सूर्य
[ऋ.१०.१०, १३५.१] ।
यम वैवस्वत n. यम एवं उसकी जुडवा बहन यमी का संवाद ऋग्वेद में प्राप्त है, जहॉं यमी इससे संभोग के लिए प्रार्थना करती है । उस समय यम ने भगिनीसंभोग अधर्म कह कर उसे निराश किया । फिर यमी ने इससे कहा, ‘यहॉं कौन देख रहा है’ तब इसने कहा, ‘देवदूत देखते है, जिनका निवास-संचार हर एक स्थान पर है’ (न निमिषन्त्येते देवानां स्पर्श इह ये चरन्ति)
[ऋ.१०.८] । यह कथा उस समय की है, जब मानवसमाज में नीतिशास्त्र अप्रगल्भ अवस्था में था ।
यम वैवस्वत n. ऋग्वेद के एक सूक्त में यम के द्वारा मृत्यु की स्वीकार किये जाने का, एवं यज्ञकुंड में आत्माहुति देने का निर्देश प्राप्त है
[ऋ. १०.१३.४] । उस सूक्त के अनुसार, देवों के कल्याण के लिए यम ने मृत्यु की स्वीकार की (अवृणीत मृत्युम्), एवं अपना प्रिय शरीर यज्ञकुंड में झोंक दिया (प्रियां यमस्तन्वं प्रारिरेचीत्) ।ऋग्वेद के इस महत्त्वपूर्ण सूक्त से प्रतीत होता है कि, वैदिक आर्यो के यज्ञसंस्था के प्रारम्भ में यज्ञकर्ता स्वयं की आहुति देता था । आत्मबलिदान की इसी कल्पना से यज्ञसंस्था का प्रारंभ हुआ । प्रजा तथा देवों के कल्याण के लिए, आत्मसमर्पण करनेवाला यम एक आद्य यज्ञकर्ता माना जाता है । आगे चल कर, यज्ञ में आत्मबलिदान की जगह यज्ञीय पशु का हवन करने की प्रथा प्रचलित हुयी ।
यम वैवस्वत n. यम मरणशील मनुष्यों में प्रथम था, अतएव उसे मृत होनेवालों में प्रधान माना गया, तथा इसे मृत्यु के साथ समीकृत किया गया । अथर्ववेद तथा बाद के पुराणकथाशास्त्र में, मृत्यु का भय के साथ घनिष्ठ रुप से संबद्ध होने के कारण, यम मृत्यु के देवता बन गया । बाद की संहिताओं में ‘अंतक’ ‘मृत्यु’ ‘निऋति’ के साथ यम का उल्लेख कर, ‘मृत्यु’ को इसका दूत कहा गया है
[अ.वे.५.३०,१८.२] । अथर्ववेद में मृत्यु को मनुष्यों का, तथा यम को पितरों का अधिपति कहा गया है, तथा ‘निद्रा’ को कहा गया है कि, वह यम के क्षेत्र से आती है ।
यम वैवस्वत n. यम शब्द का भाषाशास्त्रीय आशय ‘यमज’ (जुडवां पैदा होनेवाला) है, जिस अर्थ में इसका निर्देश ऋग्वेद में अनेक बार प्राप्त है
[ऋ.१०.१०] । अवेस्ता में निर्दिष्ट ‘यिम’ का अर्थ भी यही है । इसके अतिरिक्त, ‘निर्देशक’ अर्थ से ‘यम’ का प्रयोग भी ऋग्वेद में कई बार हुआ है । उत्तरकालीन साहित्य में, यम को दुष्टों का यमन (नियंत्रित) करनेवाला देवता माना गया है ।
यम वैवस्वत n. महाभारत तथा पुराणों में इसे विवस्वत् तथा संज्ञा का पुत्र कहा गया है
[ह.वं.१.९.८] ;
[मार्क.७४.७] ;
[भा.६.६.४०] ;
[मस्त्य ११.४] ;
[विष्णु.३.२.४] ;
[पद्म. सृ.८] ;
[वराह. २०.८] ;
[भवि. प्रति.४. १८] । संज्ञा को सूर्य का तेज सहन न होता था, इसलिए वह उसके सामने आते ही नेत्र बन्द कर लेती थी । इसी लिए सूर्य ने उसे शाप दिया, ‘तुम्हारे उदर से प्रजासंहारक यम जन्म लेगा’
[मार्क. ७४.४] । यम यमी जुडवा संतान थे
[पद्म. सृ.८] ।
यम वैवस्वत n. इसने छाया नामक अपनी सौतेली माता की निर्भर्त्सना कर के उसे लातों से मारा था
[ब्रह्म.६] ; एवं दाहिना पैर उठा कर उसकी निर्भर्त्सना की थी
[मत्स्य.११.११] ;
[पद्म.सृ.८] । इसलिए छाया ने एकदम क्रोध से इसे शाप दिया, ‘तुम्हारा यह पैर गल जायेगा । उसमे पीप, रक्त तथा कीडे होंगे’
[मत्स्य.११.१२] । उसके बाद यम अपने पिता के पास गया, तथा सारी स्थिति कह सुनाई । तब पिता ने इसे उःशाप दिया, जिसके संबंध सें काफी मत मतान्तर हैः---‘पैर हड्डी सहित न गलेगा, केवल पैर का मांस कीडे खा लेंगे’
[ह.वं.१.९.३१] ;
[वायु.८४.५५] । ‘पीप रक्त इत्यादि कीडे खा लेंगे, तथा बाद में पैर पूर्ववत हो जायेगा’
[मत्स्य.११. १७] । ‘एक लाल पैर का पक्षी पैर खा लेगा, तथा बाद में पैर छोटा परन्तु सुन्दर बन जायेगा’।
यम वैवस्वत n. बाद में इसे वैराग्य उत्पन्न हुआ, और इसने तप करना प्रारंभ किया । तब ब्रह्मदेव ने इसे पितरों का स्वामित्त्व, तथा संसार के पापपुण्यों पर नजर रखने का काम दिया
[पद्म.सृ.८] । इसे ‘धर्म’ नामांतर भी प्राप्त था
[ब्रह्म.९४.१६-३२] ।
यम वैवस्वत n. कठोपनिषद में ‘यम-नचिकेत संवाद’ नामक एक तत्त्वज्ञानविषयक संवाद प्राप्त है, जिसके अनुसार एक बार नचिकेतस् यम से मिलने के लिये लोक में गया । वहॉं यम ने उसे ‘पितृक्रोधनशमन’ एवं ‘अग्निज्ञान’ ये दो वर प्रदान किये । उसके पश्चात् नचिकेतस् ने यम से पूछा ‘मृत्यु के बाद प्राण कहॉं जाता हैं?’ यम ने कहा, ‘मृत्यु के उपरांत प्राणगमन के स्थिति तुम मत पूछो’ (मरणं मानु प्राक्षीः) । किन्तु नचिकेतस् के अन्यधिक आग्रह पर यम ने कहा, ‘मृत्यु के उपरांत प्राण नष्ट नहीं होता । कर्म के अनुसार, उसे गति प्राप्त होती है’इसके पश्चात् नचिकेतस् ने यम से ब्रह्म के स्वरुप के बारे में प्रश्न किया । तब यम ने उत्तर दिया, ‘देवताओं को भी ब्रह्म के सत्यस्वरुप का ज्ञान नहीं है । क्यों कि, ब्रह्मज्ञान जटिल एवं गहन है । इस प्रकार कठोपनिषद में वर्णित यम, देवता न हो कर एक आचार्य है, जिसने धार्मिक मनोवृत्तियों के वशीर्भूत हो कर, तात्त्विक रुप से धर्म की व्याख्या कर के लोगों को उपदेश दिया है
[क.उ.१.१६] । यही यम-नचिकेत संवाद अग्निपुराण में भी प्राप्त है
[अग्नि.३८५] ।यम को नारायण से ‘शिवसहस्त्रनाम’ का उपदेश मिला था, जिसे भी इसने नचिकेत को प्रदान किया था
[म.अनु.१७.१७८-१७९] ।
यम वैवस्वत n. यम एवं यमदूतों के बीच हुऐ अनेकानेक संवाद ‘यमगीता’ नाम से प्रसिद्ध है । यमगीता निम्नलिखित पुराणों में ग्रंथित की गयी हैः---विष्णुपुराण (३.७); नृसिंहपुराण (८); अग्निपुराण (३८२); स्कंदपुराण ।
यम वैवस्वत n. महाभारत में इसे प्राणियों का नियमन करनेवाला यमराज कहा गया है, जो भगवान सूर्य का पुत्र, एवं सब के शुभाशुह कर्मो का साक्षी बताया गया है
[म.आ.६७.३०] । इसे मारीच कश्यप एवं दाक्षायणी का पुत्र कहा गया है
[म.आ.७०.१०] । अणीमाण्डव्य ने इसे शूद्रयोनि में जन्म लेने के लिए शाप दिया था
[म.आ.१०१.२५] । क्यों कि, यम ने उसे निरपराधी होते हुए भी फॉंसी की सजा दी थी । बाद को इसने विदुर के रुप में जन्म लिया था
[भा.१.१३.१५] ;
[म.आ.५७.८०, १००.२८, १०१.२७] ।पूर्वकाल में नैमिषारण्य में यम वैवस्वत ने शामित्र (कर्म) नामक यज्ञ किया था । वहॉम इसने यज्ञदीक्षा ली, जिससे संसार मृत्यु के द्वारा नष्ट होने से बच गया । सभी व्यक्ति अमर हो गए, तथा इस प्रकार संसार में जनसंख्या बढने लगी । तब इसने युद्धादि को जन्म दिया, जिससे प्राणियों की संख्या मृत्यु के द्वारा कम हो गयी
[म.आ.१८९.१-८] । खाण्डवदाह के समय, श्रीकृष्ण तथा अर्जुन से युद्ध करने के लिए इंद्र की ओर से, यह भी कालदण्ड ले कर आया था
[म.आ.२१८.३१] ।एक बार इसको उद्देशित कर कुन्ती ने मंत्र का उच्चारण किया, जिसके कारण इसे उसके पास जाना पडा । वहॉं उसके उदर से इसने एक पुत्र उत्पन्न किया । वही ‘युधिष्ठिर’ है
[म.आ.११४.३] । इसने अर्जुन को एक अस्त्र प्रदान किया था
[म.व.४२.२३] । इसने दमयन्तीस्वयंवर के समय राज नल को भी वर प्रदान किया था । धर्मराज के द्वारा इसके प्रश्नों के योग्य उत्तर देने के कारण, एक सरोवर में मृत पडे उसके चारो भाइयों को इसने जीवित किया था, तथा अज्ञातवास में सफल होने का उसे वरदान भी दिया था
[म.व.२९७-२९८] । सावित्री को अनेक वर देने के उपरांत, इसने उसे सत्यवान् का पुनः जीवित होने का वर प्रदान किया था
[म.व.२८१.२५-५३] ।इंद्र ने इसे पितरों का राजा बनाया था । पितरों के द्वारा पृथ्वीदोहन के समय यह बछडा बना था
[अ.वे.२.८.२८] । त्रिपुरदाह के समय, यह शिव के बाण के पूछभाग में प्रतिष्ठित था । इसका महर्षि गौतम के साथ धर्मसंवाद हुआ था
[म.शां.१२७] । इसने उसे मातृ-पितृऋण से मुक्त होने का मार्ग बताया था ।यम मुंज पर्वत पर शिव की उपासना करता था
[म.आश्व.८.१-६] । इसकी पत्नी का नाम घूमोर्णा था
[म.अनु.१६५.११] ।अन्य पुराणों के अनुसार, इसकी नगरी का नाम संयमिनी था, मानसोत्तर पर्वत पर स्थित थी
[भवि.ब्राह्म.५३] । रामभक्त सुरथ की परीक्षा ले कर, इसने उसे वर दिया था, ‘तुम्हें मृत्यु तभी प्राप्त होगी, जब तुम राम के दर्शन कर लोगे’
[पद्म.पा.३९] ।
यम वैवस्वत n. यम को उसकी बहन यमी ने कार्तिक शुल्क द्वितीया को भोजन दिया था । इसी लिए इसने उसे वर दिया था कि, जो भी इस दिन बहन के हाथों बना भोजन ग्रहण करेंगे, उन्हे सदैव सौख्य प्राप्त होगा
[स्कंद.२.४.११] ।हर्षण राजा के विश्वरुप नामक पिता को तथा विष्टि नामक माता को भीषण स्वरुप प्राप्त हुआ था । हर्षण ने यम की उपासना कर इससे प्रार्थना की कि, उन्हें सौम्य स्वरुप प्राप्त हो । तब इसने उन्हे गंगास्नान का व्रत बताया
[ब्रह्म.१६५] ।एक बार इसके तप को देख कर इंद्र को भय हुआ, एवं उसने एक अप्सरा को भेज कर, इसका तप भंग करना चाहा । तब इसने इंद्र को सूचित किया कि, यह उसका इंद्रासन नहीं चाहता । बाद को इसने ‘धर्मारण्य’ नामक प्रदेश प्राप्त किया, जो शंकर का वासस्थान था
[स्कंद३.२४] ।
यम वैवस्वत n. यम के नाम पर तीन ग्रन्थ उपलब्ध हैः---१. यमसंहिता २. यमस्मृति, ३. यमगीता ।
यम वैवस्वत n. याज्ञवल्क्य के द्वारा दी गयी धर्मशास्त्रकारों की सूची में यम का भी उल्लेख आता हैं
[याज्ञ.१.५] । वसिष्ठ धर्मसूत्र में यम के श्लोक आये हैं । अपरार्क ने शंखस्मृति में यम के धर्मविषयक विचारों को व्यक्त किया है, जिसके अनुसार कुछ पक्षियोंका ही मॉंस खाना उचित कहा गया है
[अपरार्क पृ.११६७] । हर एक रुप में दूसरे जीवों के प्राणों की रक्षा के लिए भी वहॉ भी गया है । जीवानंद संग्राम में इसके श्लोको की संख्या अठत्तर दी गयी हैं, जो आत्मशुद्धि एवं प्रायश्चित्त से सम्बन्धित हैं । आनंदाश्रम के ‘स्मृतिसमुच्चय’ में इसकी निन्नानवे श्लोकों की स्मृति प्राप्त है, जिसमें प्रायश्चित्त, श्राद्ध आदि के बारे में विचार प्राप्त है । इसकी स्मृति में इसका निर्देश ‘भास्वति’ (सूर्यपुत्र) नाम से किया गया है ।यम के अनुसार, विवाह के पश्चात् पत्नी का स्वतंत्र गोत्र नष्ट हो कर, उसका एवं उसके पति का गोत्र एक ही होता है
[याज्ञ. १.२५४] । ‘बृहद् यम स्मृति’ नामक एक अन्य स्मृतिग्रंथ भी प्राप्त हैं, जिसमें पॉंच अध्याय, एवं १८२ श्लोक प्राप्त है । उस स्मृति में शुद्धि आदि विषयों का विचार किया गया है । इस स्मृति में ‘यम’ एवं ‘शातातप’ आचार्यो के निर्देश प्राप्त हैं
[बृहद् यम.३.४२,५.२०] । विश्वरुप, विज्ञानेश्वर, अपरार्क, स्मृतिचंद्रिका आदि उत्तरकालीन ग्रंथों में ‘यमस्मृति’ में से तीन सौ के उपर श्लोक उद्धृत किये गये है, जिनमें निम्नलिखित विषयों पर यम के विचार प्राप्त हैः---श्राद्ध
[याज्ञ.१.२२५] ; गोवध का प्रायश्चित्त
[याज्ञ. ३.२६२] ; कन्या का विवाहयोग्य वय
[स्मृतिचं.पृ.७९] ; अपचित्र अन्न शुध कैसे किया जा सकता चाहिए
[अपरार्क. पृ.५८] ; ब्राह्मण को देहान्त शासन न देना चाहिये
[स्मृतिचं.पृ.३१६] ; असुर पत्नी का स्त्रीधन
[याज्ञ. २.१४५] । व्यभिचार
[अपरार्क. पृ.८६०] । आयुष्यक्षय के संबंध में इसने नचिकेत को बतायी हुयी गाथाएँ महाभारत में प्राप्त हैं
[म.अनु.१०४.७२-७६] ।यम के अनुसार, स्त्रियों के लिए संन्यास-आश्रम अप्राप्य है । उन्हें चाहिये कि, वे अपनी एवं अपनी जाति के संतानों की सेवा करे
[स्मृतिचं.पृ.२५४] ।यम के द्वारा रचित ‘लघुयम’ एवं ‘स्वल्पयम’ स्मृतिग्रंथों के उद्धरण भी हरदत्त, अपरार्क एवं स्मृतिरत्नाकर में प्राप्त हैं ।