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सनत्कुमार

   { sanatkumāra }
Script: Devanagari

सनत्कुमार

Puranic Encyclopaedia  | English  English |   | 
SANATKUMĀRA   one of the Sanakādis.

सनत्कुमार

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi |   | 
 noun  ब्रह्माजी के मानस पुत्र   Ex. सनत्कुमार ब्रह्माजी के चार मानस पुत्रों में से एक हैं ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)

सनत्कुमार

सनत्कुमार n.  एक सुविख्यात तत्त्ववेत्ता आचार्य, जो साक्षात् विष्णु का अवतार माना जाता है । इसे ‘सनत्कुमार’, ‘कुमारआदि नामांतर भी प्राप्त है । सनत्कुमार का शब्दशः अर्थजीवन्मुक्तहोता है [म. शां. ३२६.३५] । यह एवं इसके भाई कुमारावस्था में ही उत्पन्न हुए थे, जिस कारण, येकुमारसामूहिक नाम से प्रसिद्ध थे ।
सनत्कुमार n.  विष्णु के अवतार माने गये ब्रह्ममानसपुत्रों की नामावलि महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त हैं:-- (१) महाभारत में---इस ग्रंथ में इनकी संख्या सात बतायी गयी है, एवं इनके नाम निम्न दिये गये हैः-- १. सन; २. सनत्सुजात; ३. सनक; ४. सनंदन; ५. सनत्कुमार; ६. कपिल; ७. सनातन [म. शां. ३२७.६४-६६]महाभारत में अन्यत्रऋभुको भी इनके साथ निर्दिष्ट किया गया है [म. उ. ४१.२-५] । (२) हरिवंश में---इस ग्रंथ में इनकी संख्या सात बतायी गयी हैः-- १. सनक; २. सनंदन; ३. सनातन; ४. सनत्कुमार; ५. स्कंद; ६. नारद; एवं ७. रुद्र [ह. व. १.१.३४-३७] । (३) भागवत में---इस ग्रंथ में इनकी संख्या चार बतायी गयी हैः-- १. सनक; २. सनंदन; ३. सनत्कुमार; एवं ४. सनातन [भा. २.७.५] ; ३.१२.४; ४.८.१ ।
सनत्कुमार n.  ये ब्रह्मज्ञानी, निवृत्तिमार्गी, योगवेत्ता, सांख्याज्ञानविशारद, धर्मशास्त्रज्ञ, एवं मोक्षधर्म-प्रवर्तक थे [म. शां. ३२७.६६]ये विरक्त, ज्ञानी, एवं क्रियारहित (निष्क्रिय) थे [भा. २.७.५]ये निरपेक्ष, वीतराग, एवं निरिच्छ थे [वायु. ६.७१]ये सर्वगामी, चिरंजीव, एवं इच्छानुगामी थे [ह. वं. १.१.३४-३७]अत्यधिक विरक्त होने के कारण, इन्होनें प्रजा निर्माण से इन्कार किया था [विष्णु. १.७.६]
सनत्कुमार n.  इनका निवास हिमगिरि पर था, जहाँ विभांडक ऋषि इनसे मिलने गये थे । अपने इसी निवासस्थान से इन्होनें विभांडक को ज्ञानोपदेश किया था [म. शां. परि. १.२०]
सनत्कुमार n.  इसने निम्नलिखित साधकों को ज्ञान, वैराग्य, एवं आत्मज्ञान का उपदेश किया थाः-- १. नारद---आत्मज्ञान [छां. उ. ७.१.१.२६] ; एवं भागवत का महत्त्व ---12--- ; २. सांख्यायन---भागवत [भा. ३.८.७] ; ३. वृत्रासुर---विष्णुमाहात्म्य [म. शां. २७१] ; ४. रुद्र---तत्त्वसृष्टि [म. अनु. १६५.१६] ५. विभिन्न ऋषिसमुदाय---भगवत्स्वरूप [म. शां. परि. १.२०] ; ६. विश्वावसु गंधर्व---आत्मज्ञान [म. शां. ३०६.५९ -६१] ; ७. धृतराष्ट्र---धर्मज्ञान [म. उ. ४२-४५] ; ८. ऐल---श्राद्ध [विष्णु. ३.१४.११]
सनत्कुमार n.  सात्वत धर्म की आचार्य परंपरा में सनत्कुमार एक सर्वश्रेष्ठ आचार्य माना जाता है । इस धर्म का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्मा ने इसे प्रदान किया, जो आगे चल कर इसने वीरण प्रजापति को दे दिया [म. शां. ३३६.३७]आगे चल कर सनत्कुमार का यही उपदेश नारद ने शुक को प्रदान किया, जिसका सार निम्नप्रकार बताया गया हैः-- नास्ति विद्यासमं चक्षु सत्यसमं तपः। नास्ति रागसमं दुःख नास्ति त्यागसमं सुखम्॥ [म. शां. ३१६.६] ।(विद्या के समान श्रेष्ठ नेत्र इस संसार में नहीं है । साथ ही साथ, सत्य के समान श्रेष्ठ तप, राग के समान बड़ा दुःख, एवं त्याग के समान श्रेष्ठ सुख भी इस संसार में अन्य कोई नहीं है) । नारद के द्वारा प्राप्त इस उपदेश के कारण, शुक ने परंधाम जाने का निश्र्चय किया, एवं वह आदित्यलोक में प्रविष्ट हुआ (शुक वैयासकि देखिये) ।
सनत्कुमार n.  महाभारत के ‘प्रजागरनामक उपपर्व में धृतराष्ट्र को सनत्कुमार के द्वारा दिया तत्त्वोपदेश प्राप्त है, जोसनत्सुजातीयनाम से सुविख्यात है । यह उपदेश कृष्ण दैत्य के पूर्वरात्रि में सनत्सुजात के द्वारा दिया गया था (विदुर देखिये) । उस उपदेश में मानवीय आयुष्य की मृत्यु को इसने भ्रममूलक बता कर, मनुष्य की सही मृत्यु उसके द्वारा किये गये प्रमादों में है, ऐसा कथन किया है । इन प्रमादों सें बचने के लिए, मौनादि साधनों का उपयोग करने का, एवं क्रोधादि दोषों को दूर रखने का उपदेश इसने धृतराष्ट्र को दिया । क्रोधादि दोषों का त्याग करने से, एवं मौनादि गुणों का संग्रह करने से, मनुष्यकेवल प्रमादों से दूर रहता है, किन्तु उसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति भी होती है, ऐसा अपना अभिमत इसने स्पष्टरूप से कथन किया है [म. उ. ४२-४५]महाभारत में प्राप्त यह ‘सनत्सुजातीयउपदेश भगवद्गीता के समान ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है । आद्य शंकराचार्य आदि आचार्यों ने इस पर स्वतंत्र भाष्य की भी रचना की है ।
सनत्कुमार n.  कृष्णपुत्र प्रद्युम्न इसका ही अवतार माना जाता है [म. आ. ६१.९१]प्रद्युम्न की मृत्यु होने पर, वह इस के ही स्वरूप में विलीन हुआ [म. स्व. ५.११]
सनत्कुमार n.  नारद को उपदेशप्रदान करनेवाला सनत्कुमार एक श्रेष्ठ उपनिषदकालीन तत्त्वज्ञ माना जाता है । इसका समग्र तत्त्वज्ञान इस के द्वारा नारद को दिये गये उपदेश में प्राप्त है, जो छांदोग्योपनिषद में ग्रथित किया गया है । अपने उस उपदेश में इसने ‘अध्यात्मिक सुखवाद’ का प्रतिपादन किया है । इस तत्त्वज्ञान के अनुसार, आध्यात्मिक सुख प्राप्ति के लिए मनुष्य कर्म करता है, जिससे आगे चल कर श्रद्धा निर्माण होती है । इसी श्रद्धा से ज्ञान की प्राप्ति होती है, जो आगे चल कर आत्मज्ञान कराती है । अपने इस तत्त्वज्ञान में, आत्मानुभूति की नैतिक सोपानपंक्ति सनत्कुमार के द्वारा सुख, कर्म, श्रद्धा, ज्ञान, एवं साक्षात्कार, इस प्रकार बतायी गयी है [छां. उ. ७.१७-२२]
सनत्कुमार n.  सनत्कुमार के द्वारा की गयीभूमन्शब्द की मीमांसा इसके तत्त्वज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण भाग मानी जाती है । इस तत्त्वज्ञान के अनुसार सृष्टि के हरएक वस्तुमात्र में एक ही परमात्मा का साक्षात्कार होने की अवस्था कोभूमन्कहा गया है । इस साक्षात्कार से मनुष्य को अत्युच्च आनंद की प्राप्ति होती है, जिसकी तुलना में स्त्री, भूमि, ऎश्र्वर्य आदि ऐहिक वस्तुओं से प्राप्त होनेवाला आनंद यःकश्चित् प्रतीत होता है [छां. उ. ७.२३-२४] । सनत्कुमार के अनुसार साधक को जब आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है (सोऽहं आत्मा), उस समय उसेभूमन्तत्त्व का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है [छां. उ. ७.२५]इस प्रकार, आत्मा ही सृष्टि के उत्पत्ति का कारण है, एवं इसी आत्मा से मानवीय आशा एवं स्मृति निर्माण होती है । इसी आत्मा से सृष्टि के हरएक वस्तु का विकास होता है, एवं विनाश के पश्चात् सृष्टि की हरएक वस्तु इसी आत्मा में ही विलीन होती है, ऐसा सनत्कुमार का अभिमत था
सनत्कुमार n.  इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ एवं आख्यान प्राप्त हैः-- १. सनत्कुमार उपपुराण [कूर्म. पूर्व. १.१७] ; २. सनत्सुजातीय आख्यान [म. उ. ४२-४५] ; शांकरभाष्य के सहित; ३. सनत्कुमार संहिता [शिव. स्कंद. सूतसंहिता. १.२२.२४] , ४. सनकुमार वास्तुशास्त्र; ५. सनत्कुमार तंत्र; ६. सनत्कुमार कल्प (C.C.) ।
सनत्कुमार II. n.  आर्य नामक वसु का पुत्र [ब्रह्मांड. ३.३.२४]
सनत्कुमार III. n.  स्कंद का नामांतर
सनत्कुमार III. n.  सनत्कुमार नामक आचार्य का नामांतर (सनत्कुमार १. देखिये) ।
सनत्कुमार III. n.  (सो. निमि.) एक राजा, जो शुचि राजा का पुत्र, एवं ऊर्ध्व केतु राजा का पिता थाइसे सत्यध्वज नामांतर भी प्राप्त था
सनत्कुमार IV. n.  अंगिराकुलोत्पन्न एक मंत्रकार।

सनत्कुमार

कोंकणी (Konkani) WN | Konkani  Konkani |   | 
 noun  ब्रह्माचो मानस पूत   Ex. सनत्कुमार ब्रह्माच्या चार मानस पुतां मदलो एक
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)

सनत्कुमार

A dictionary, Marathi and English | Marathi  English |   | 
   A term for a continent or sanctified person; one retaining, through life, the purity and innocency of the unadult period.

सनत्कुमार

  पु. सनकादिक पहा .

सनत्कुमार

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English |   | 
सनत्—कुमार  m. m.always a youth’ or ‘son of ब्रह्मा’, also title or epithet).">N. of one of the four or seven sons of ब्रह्मा (cf.सनक; he is said to be the oldest of the progenitors of mankind [= वैधात्रq.v.], and sometimes identified with स्कन्द and प्रद्युम्न, he is also the supposed author of an उप-पुराण and other works; with जैनs he is one of the 12 सार्वभौमs or चक्रवर्तिन्s [emperors of India]; the also title or epithet).">N. of सनत्-कुमार is sometimes given to any great saint who retains youthful purity), [ChUp.] ; [MBh.] ; [Hariv.] &c.

सनत्कुमार

Shabda-Sagara | Sanskrit  English |   | 
सनत्कुमार  m.  (-रः)
   1. one of the four sons of BRAHMĀ, and eldest of the progenitors of mankind.
   2. one of the twelve emperors of india according to the Jainas.
   E. सनत् always, कुमार a youth: i. e. continent; retaining the purity of that age, or being devoid of human passion; otherwise, सनत् BRAHMĀ, and कुसार son.

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