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वैदिक धर्म
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ईसाई धर्म
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ख्रिस्ती धर्म
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धर्म
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इस्लाम धर्म
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सिख धर्म
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पारसी धर्म
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यहुदी धर्म
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यहूदी धर्म
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धर्म-लिपि
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जैन धर्म
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ज्यू धर्म
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हिंदू धर्म
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धर्म लिपी
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धर्म कर्म
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बौद्ध धर्म
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शीख धर्म
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धर्म चक्र
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धर्म प्रचारक
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धर्म प्रवर्तक
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पारशी धर्म
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धर्म सुवात
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धर्म स्थान
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हिन्दू धर्म
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धर्म सावर्णि मन
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धर्म सावर्णि मनु
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क्षात्र-धर्म
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आडवाटा धर्म
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श्रीदत्तात्रेयाचे अभंग - पडतां पापीं धारी धर्म । द...
दत्तात्रेय पूर्ण अवतार असून, ब्रम्हा, विष्णू आणि महेश यांचे एकत्रीत रूप आहे. Dattatreya is considered by some Hindus, to be god who is an incarnation of the Divine Trinity Brahma, Vishnu and Mahesh.
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संगीत स्वयंवर - उग्रमुख बहु बिकट धर्म ; म...
श्री रूक्मिणीस्वयंवराच्या सर्वश्रुत कथानकातील, श्रीकृष्ण व रूक्मिणी यांच्या चरित्रातील उदात्त तत्वे श्री. कृष्णाजी प्रभाकर खाडिलकर यांनी नाटकाद्वारे प्रेक्षकांपुढे मांडली.
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कुल-धर्म
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वेदांत काव्यलहरी - वेदविहित धर्म
सदर ग्रंथाची किंमत होती - जो जी देईल ती. सदर पुस्तकाबद्दल दैनिक सकाळ २६/०६/१९३८ चे अंकात अभिप्राय छापून आलेला आहे.
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खरा धर्म - खरा तो एकची धर्म। जगाला प...
साने गुरूजींचे संपूर्ण नाव - पांडुरंग सदाशिव साने
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संत तुकाराम - सर्व धर्म मन विठोबाचें ना...
संत तुकाराम गाथेत समाविष्ट न केलेले अप्रसिद्ध अभंग.
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बैष्णव धर्म - विष्णुमय जग वैष्णवांचा धर...
बालकवी ऊर्फ त्र्यंबक बापूजी ठोंबरे (इ.स. १८९०-इ.स. १९१८) यांचा मराठीतील सर्वश्रेष्ठ निसर्गकवी म्हणून यथार्थ गौरव केला जातो.
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धर्मसिंधु - अध्ययन करण्याचे धर्म
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे. This 'Dharmasindhu' grantha was written by Pt. Kashinathashastree Upadhyay, in the year 1790-91.
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आदिखंड - कर्म धर्म गुण
सत्कार्योत्तेजक सभा धुळें, महाराष्ट्रधर्मग्रन्थमाला
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आज मरा, उद्या धर्म करा
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काव्यरचना - मानवांचा धर्म एक
महात्मा फुल्यांनी हे काव्य व्यक्तिमात्रास अनुलक्षुन लिहिले नसून फक्त उपमापर लिहून दिलगिरी व्यक्त केली.
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तृतीय परिच्छेद - विधवेचे धर्म
निर्णयसिंधु ग्रंथामध्ये कोणत्या कर्माचा कोणता काल , याचा मुख्यत्वेकरून निर्णय केलेला आहे .
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श्रीदत्त भजन गाथा - "धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे"
श्रीयुत विनायक वासुदेव साठे यांनी रचलेली श्रीदत्त भजन गाथा.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - क्षत्रियधर्म
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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राजधर्म विचार- राजाचे गुण
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - मंगलाचरण
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - अथ ब्राम्हणलक्षण
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - संन्यासाश्रम
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - वर्णव्यवस्था
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - वैश्यकर्मधर्म
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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वर्णाश्रमधर्मनिर्णय - प्रजापालन
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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राजधर्म विचार- राजाचा आवश्यक व्यवहार
वर्ण ही एक अवस्था आहे. शास्त्रानुसार प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ह्नणून जन्माला येतो, आणि प्रयत्नपूर्वक विकास करून अन्य वर्ण व्यवस्थेपर्यंत पोहोचतो. वास्तविक पाहता प्रत्येकांत चारही वर्ण स्थापित आहेत, या व्यवस्थेलाच वर्णाश्रम धर्म म्हणतात.
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