भक्त कान्हड़दासजीका जन्म जयपुर राज्यमें हुआ था । संतों और महात्माओंके जीवनमें अलौकिक और चमत्कारपूर्ण घटनाओंका समावेश होते रहना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है । भक्त कान्हड़दासजी जयपुर तथा बीकानेर आदि राज्योंमें अपनी सिद्धियों और चमत्कारोंके लिये बहुत प्रसिद्ध थे । उनकी वाणी सर्वथा सिद्ध और सत्य होती थी । वे दादूपन्थी महात्मा थे ।
एक समय वे बीकानेर गये । तत्कालीन महाराजने उनसे अपने निःसन्तान होनेकी मनोव्यथा कही । कान्हड़दासजीका नवनीतके समान हदय द्रवित हो उठा । उन्होंने महाराजको पुत्र होनेका आशीर्वाद दिया । उनकी कृपामयी वाणीके प्रसादरुपमें पुत्र उत्पन्न होनेपर श्रीमहाराजने महात्मा कान्हड़दासको भगवानकी भक्तिके प्रचारके लिये एक लाख रुपयेकी भेंट दी, संतने उस द्रव्यका उपयोग गूडापूँखमें गुरुद्वारा निर्माण करनेमें किया और स्वयं वहीं रहकर तपस्या करने लगे ।
जसरापुरके श्रीरघुनाथ - मन्दिरमें एक बहुत बड़े वचनसिद्ध महात्मा तपसी बाबा रहते थे । उन्होंने एक शिष्य भेजकर तूँबेमें कान्हड़दासने विनम्रतापूर्वक कहा कि अभी तो गायें बैठी हैं । थोड़ी देरमें तपसी बाबाके शिष्यने निवेदन किया कि गायें खड़ी हैं । महात्मा कान्हड़दासने तूँबेमें दूध दुहनेका आदेश दिया । अधिक समयतक दूध दुहते रहनेपर भी तूँबा नहीं भर सका, तब कान्हड़दासने एक दोहनीमेंसे अलग दूध लाकर तूँबेमें उँडेलना आरम्भ किया । न तो तूँबा भरता था और न दोहनीके दूधकी धारा बंद होती थी । तपसी बाबाके आदेशसे उनका शिष्य लौट गया । संतोंकी जीवन - लीला विचित्र होती है, उनकी कृपासे पहाड़ राई और राईका पहाड़ हो जाता है ।
महात्मा कान्हड़दासने सौ सालकी एक भविष्यवाणी ( साठी ) भी लिखी थी । यह पुस्तक जसरापुरके अस्तल नामक आश्रममें अब भी प्राप्य हैं ।