कानस्वामीका जन्म उन्नीसवीं सदीमें काठियावाड़ तालुकाके थोडका ग्राममें हुआ था । उनके पिता दसनामी गोसाई गृहस्थ थे । उनके बचपनमें ही उनके पिताने परलोककी यात्रा की । पालन - पोषण और शिक्षाका भार माताके कन्धोंपर आ पड़ा । उन्होंने कानस्वामीका विवाह पासके ही ग्राममें कर दिया । कानस्वामीका मन गृहस्थीमें नहीं लगता था । सहसा वैराग्यका उदय होनेपर वे गिरनार चले गये । साधुसंतोके दर्शनका उनके होनेपर वे गिरनार चले गये । साधु - संतोके दर्शनका उनके हदयपर बड़ा प्रभाव पड़ा, उनका जीवन कृपा की, अपना शिष्य बना लिया । पर जब उनको यह पता चला कि कानस्वामी विवाहित हैं, तब उन्होंने धर आकर गृहस्थी चलानेका आदेश दिया ।
वे गुरुकी आज्ञासे घर चले आये; उनकी माताका उस समय देहान्त हो चुका था । अब उनका अधिकांश समय ईश्वर - भजन और पूजन तथा चिन्तन - स्मरणमें ही बीतने लगा । अब उतकी पत्नीचे आज्ञङ्का हुई कि वे कहीं घर छोड़कर चले न जायँ । एक बार वे घरसे नाता तोड़कर जानेवाले ही थे कि साध्वीं पत्नीने उन्होंके साथ रहकर ईश्वर - मजन करनेकी इच्छा प्रकट की; कानवमीने इसको स्वीकार कर लिया ।
अपने ग्रामसे थोड़ी दूरपर ही उन्होंने एकान्त स्थानमें अपना निवासस्थान स्थिर किया । वे सपत्नीक कुटीमें प्रसन्नतापूर्वक रहकर जीवन बिताने लगे । आसपासके लोगोंमें ही नहीं, समस्त काठियावाड़ - क्षेत्रमें उनकी ख्याति फैल गयी । वह भूमि - भाग उनके तपस्यापूर्ण जीवनसे धन्य और पवित्र हो गया, चारों और भगवद्भक्तिकी खेती लहरा उठी । निकटके एक धनी व्यक्ति बालजी भाई कानस्वाज्मीमें बड़ी श्रद्धा - भक्ति रखते थे । वे यथाशक्ति उनकी सेवामें लगे रहते थे । कानस्वामीने ईश्वर - भक्तिको ही जीवनकी अक्षय सम्पत्ति स्वीकार किया । उनका जीवन अत्यन्त मरल और पवित्र था ।