राणोजी रुठे तो म्हारो काँई करसी,
म्हे तो गोविन्दरा गुण गास्याँ हे माय ॥
राणोजी रुठे तो अपनो देश रखासी,
म्हे तो हरि रुठयाँ कठे जास्याँ हे माय ।
लोक - लाजकी काण न राखाँ,
म्हे तो निर्भय निशान गुरास्याँ हे माय ।
राम-नामकी जहाज चलास्याँ,
म्हे तो भवसागर तिर जास्याँ हे माय ।
हरि-मन्दिरमें निरत करास्याँ,
म्हे तो घूघरिया छमकास्याँ हे माय ।
चरणाँमृतको नेम हमारो,
म्हे तो नित उठ दर्शण जास्याँ हे माय ।
मीरा गिरधर शरण साँवलके,
म्हे ते चरण-कमल लिपटास्याँ हे माय ।