अभिलाषा - राणोजी रुठे तो म्हारो ...

’अभिलाषा’के अंतर्गत भगवत्प्रेमी संतोंकी सुमधुर कल्याणमयी कामनाओंका दिग्दर्शन करानेवाले पदोंकी छटा भाव-दृष्टिके सामने आती है ।


राणोजी रुठे तो म्हारो काँई करसी,

म्हे तो गोविन्दरा गुण गास्याँ हे माय ॥

राणोजी रुठे तो अपनो देश रखासी,

म्हे तो हरि रुठयाँ कठे जास्याँ हे माय ।

लोक - लाजकी काण न राखाँ,

म्हे तो निर्भय निशान गुरास्याँ हे माय ।

राम-नामकी जहाज चलास्याँ,

म्हे तो भवसागर तिर जास्याँ हे माय ।

हरि-मन्दिरमें निरत करास्याँ,

म्हे तो घूघरिया छमकास्याँ हे माय ।

चरणाँमृतको नेम हमारो,

म्हे तो नित उठ दर्शण जास्याँ हे माय ।

मीरा गिरधर शरण साँवलके,

म्हे ते चरण-कमल लिपटास्याँ हे माय ।

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Last Updated : January 22, 2014

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