सिव सुमिरे मुनि सात आइ सिर नाइन्हि ।
कीन्ह संभु सनमानु जन्म फल पाइन्हि ॥७५॥
सुमिरहिं सकृत तुम्हहि जन तेइ सुकृती बर ।
नाथ जिन्हहि सुधि करिअ तिनहिं सम तेइ हर ॥७६॥
तब शिवजीने सप्तर्षियों ( कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, विश्र्वामित्र, वसिष्ठ,भरव्दाज, और गौतम ) को स्मरण किया । उन्होंने आकार शिवजीको सिर नवाया । शिवजीने उनका सम्मान किया और उन्होंने भी (शिवजीका दर्शन करके) जन्मका फल पा लिया ॥७५॥
(सप्तर्षियोंने कहा कि) ’जो लोग एक बार भी आपका स्मरण कर लेते हैं, वे ही पुण्यात्माओंमे श्रेष्ठ हैं ।’ हे नाथ ! हे हर ! (फिर) जिसे आप स्मरण करें, उसके समान तो वही है॥७६॥
सुनि मुनि बिनय महेस परम सुख पायउ ।
कथा प्रसंग मुनीसन्ह सकल सुनायउ ॥७७॥
जाहु हिमाचल गेह प्रसंग चलायहु ।
जौं मन मान तुम्हार तौ लगन धरायहु ॥७८॥
मुनियोंकी विनय सुनकर शिवजीने परम सुख प्राप्त किया और उन मुनीश्वरोंको सब कथाका प्रसङग सुनाया ॥७७॥
(और कहा कि) ’तुमलोग हिमाचलके घर जाओ और इसकी चर्चा चलाकर यदि जँच जाय तो लग्न धरा आना’ ॥७८॥
अरुंधती मिलि मनहिं बात चलाइहि ।
नारि कुसल इहिं काज काजु बनि आइहि ॥७९॥
दुलहिनि उमा ईसु बरु साधक ए मुनि ।
बनिहि अवसि यहु काजु गगन भइ अस धुनि ॥८०॥
( इसी अवसर) आकाशवाणी हुई कि वसिष्ठपत्नी अरुन्धती मैनासे मिलकर बात चलायेंगी । स्त्रियाँ इस काम (बरेखी) में कुशल होती हैं, (अत:) काम बन जायगा ॥७९॥
उमा (पार्वतीजी ) दुलहिन हैं और शिवजी (वर ) दुलहा हैं । ये मुनिलोग साधक हैं; अत :यह काम अवश्य बन जायगा ॥८०॥
भयउ अकनि आनंद महेस मुनीसन्ह ।
देहिं सुलोचनि सगुन कलस लिएँ सीसन्ह ॥८१॥
सिव सो कहेउ दिन ठाउँ बहोरि मिलनु जहँ ।
चले मुदित मुनिराज गए गिरिबर पहँ ॥८२॥
शिवजी और मुनियोंको आकाशवाणी सुननेसे आनन्द हुआ । सुन्दर नेत्रोंवाली स्त्रियाँ सिरपर कलश लिये (शुभ) शकुन सूचित करती हैं ॥८१॥
शिवजीने महर्षियोंको वह दिन और स्थान बतलाया , जहाँ फिर मिलना हो सकत था; तब वे मुनिश्रेष्ठ आनन्द होकर गिरिराज (हिमवान् ) के पास चलकर पहुँचे ॥८२॥
गिरि गेह गे अति नेहँ आदर पूजि पहुँनाई करी ।
घरवात घरनि समेत कन्या आनि सब आगें धरी ॥
सुखु पाइ बात चलाइ सुदिन सोधाइ गिरिहि सिखाइ कै ।
रिषि सात प्रातहिं चले प्रमुदित ललित लगन लिखाइ कै ॥१०॥
जब सप्तर्षी हिमवान्के घर गये, तब हिमवान्ने स्त्रेह एवं आदरपूर्वक पूजकर उनकी पहुनाई की और पत्नी एवं कन्यासहित घरकी सारी सामग्री लाकर उनके आगे रख दी । तब (पूजा आदिसे) आनन्दित हो विवाह की बात चली और हिवमान् को समझाकर शुभ दिन शोधन करा प्रात:काल ही सातों ऋषि सुन्दर लग्न लिखवाकर आनन्दपूर्वक (वहाँसे) चले ॥१०॥