जानकी - मङ्गलमें जिस प्रकार मर्यादा - पुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामके साथ जगज्जननी जानकीके मङ्गलमय विवाहोत्सवका वर्णन है, उसी प्रकार पार्वती - मङ्गलमें प्रातःस्मरणीय गोस्वामी तुलसीदासजीने देवाधिदेव भगवान् शंकरके द्वारा जगदम्बा पार्वतीके कल्याणमय पाणिग्रहणका काव्यमय एवं रसमय चित्रण किया है । लक्ष्मी - नारायण, सीता - राम एवं राधा - कृष्ण अथवा रुक्मिणी - कृष्णकी भाँति ही गौरी - शंकर भी हमारे परमाराध्य एवं परम वन्दनीय आदर्श दम्पति हैं । लक्ष्मी, सीता, राधा एवं रुक्मिणीकी भाँति ही गिरिराजकिशोरी पार्वती भी अनादि कालसे हमारी पतिव्रताओंके लिये परमादर्श रही हैं; इसीलिये हिंदू कन्याएँ, जबसे वे होश सँभालती हैं, तभीसे मनोऽभिलषित वरकी प्राप्तिके लिये गौरीपूजन किया करती हैं । जगज्जननी जानकी तथा रुक्मिणी भी स्वयंवरसे पूर्व गिरिजा - पूजनके लिये महलसे बाहर जाती हैं तथा वृषभानुकिशोरी भी अन्य गोप - कन्याओंके साथ नन्दकुमारको पतिरुपमें प्राप्त करनेके लिये हेमन्त ऋतुमें बड़े सबेरे यमुना - स्त्रान करके वहीं यमुना - तटपर एक मासतक भगवती कात्यायनीकी बालुकामयी प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करती हैं ।
जगदम्बा पार्वतीने भगवान् शंकर - जैसे निरन्तर समाधिमें लीन रहनेवाले, परम उदासीन वीतराग - शिरोमणिको कान्तरुपमें प्राप्त करनेके लिये कैसी कठोर साधना की, कैसे - कैसे क्लेश सहे, किस प्रकार उनके आराध्यदेवने उनके प्रेमकी परीक्षा ली और अन्तमें कैसे उनकी अदम्य निष्ठाकी विजय हुई - यह इतिहास एक प्रकाशस्तम्भकी भाँति भारतीय बालिकाओंको पातिव्रत्यके कठिन मार्गपर अडिगरुपसे चलनेके लिये प्रबल प्रेरणा और उत्साह देता रहा है और देता रहेगा ।
परम पूज्य गोस्वामीजीने अपनी अमर लेखनीके द्वारा उनकी तपस्या एवं अनन्य निष्ठाका बड़ा ही हदयग्राही एवं मनोरम चित्र खींचा है, जो पाश्चात्त्य शिक्षाके प्रभावसे पाश्चात्य आदर्शोंके पीछे पागल हुई हमारी नवशिक्षिता कुमारियोंके लिये एक मनन करने योग्य सामग्री उपस्थित करता है । रामचरितमानसकी भाँति यहाँ भी शिव - बरातके वर्णनमें गोस्वामीजीने हास्यरसका अत्यन्त मधुर पुट दिया है और अन्तमें विवाह एवं विदाईका बड़ा ही मार्मिक एवं रोचक वर्णन करके इस छोटे - से काव्यका उपसंहार किया है ।
गोस्वामीजीकी अन्य रचनाओंकी भाँति उनकी यह अमर कृति भी काव्य - रस एवं भक्ति - रससे छलक रही है ।