प्रदोषव्रत ( व्रतविज्ञान ) -
यह अतिप्रशस्त सर्वाचरणीय श्रेष्ठ व्रत प्रत्येक मासकी शुक्ल और कृष्ण त्रयोदशीको किया जाता है । कृष्णका विधान पहले लिखा ही जा चुका है, उसीके अनुसार शुल्कका व्रत करन चाहिये । विशेषता यह है कि संतानके लिये ' शनिप्रदोष ', ऋणमोचनके लिये ' भौमप्रदोष ' और शान्तिरक्षाके लिये ' सोमप्रदोष ' आधिक फलदायी हैं । इतके सिवा आयु और आरोग्यकी वृद्धिली लिये ' अर्कप्रदोष ' उत्तम होता हैं । व्रतीको चाहिये कि उस दिन सूर्योस्तके समय पुनः स्त्रान करके शिवाजीका पूजन करे और
' भवाय भवनाशाय महादेवाय धीमते । रुद्राय नीलकण्ठाय शर्वाण शशिमौलिने । उग्रायोधानाशय भीमाय भयहारिणे । ईशानाय नमस्तुभ्यं पशूनां पतये नमः ॥'
से प्रार्थना करके भोजन करे ।