गौरीविसर्जन ( व्रतोत्सव ) -
यह भी चैत्र शुक्ल तृतीयाको होता है । होलीके दूसरे दिन ( चैत्र कृष्ण प्रतिपदा ) से जो कुमारी और विवाहिता बालिकाएँ, प्रतिदिन गनगौर पूजती है, वे चैत्र शुक्ल द्वितीय ( सिंजारे ) के दिन किसी नद, नदी, तालाब या सरोवरपर जाकर अपनी पूजी हुई गनगौरोंको पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायङकालके समय उनका विसर्जन कर देती हैं । यह व्रत विवाहिता लड़कियोंके लिये पतिका अनुराग उत्पन्न करानेवाला और कुमारिकाओंको उत्तम पति देनेवाला हैं ।