आलम देख झूल रही, भंडारकी लूट भई ॥चाल॥
मेहेरबान मलुखान, लुटाये पाहाड सोनेकी खाण ।
आलम देख झूल रही, भंडारकी लूट भई ॥१॥
रात्रन्दिन पर गुजरी, वाघा मुरळोके लिई हाजरी ।
आलम देख झूल रही, भंडारकी लूट भई ॥२॥
बडे तु शालु शाल, दिनकु दरबारमे लगे मशाल ।
आलम देख झूल रही, भंडारकी लूट भई ॥३॥
कवी मुकींद गीर शाई, बापु बोलले मेरे भाई ।
आलम देख झूल रही, भंडारकी लूट भई ॥४॥