फाल्गुन शुक्लपक्ष व्रत - तीर्थक्षेत्रीय व्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


पृथक् - पृथक् तीर्थक्षेत्रीय व्रत

( गर्गसंहिता ) - स्वस्थानकी अपेक्षा तीर्थस्थानोंमें किये हुए व्रतादिका अधिक फल होता है । यथा फाल्गुनकी पूर्णिमाको ' नैमिषारण्य ' में; चैत्रीको ' गण्डकी ' में, वैशाखीको ' हरिद्वार ' में, ज्येष्ठीको ' जगदीशपुरी ' ( पुरुषोत्तमक्षेत्र ) में, आषाढ़ीको ' कनखल ' में, श्रावणीको ' केदार ' में, भाद्रीको ' बदरिकाश्रम ' में, आश्विनीको ' कुब्जाद्रि ' ( कुमुदगिरि ) में, कार्तिकीको ' पुष्कर ' में, अभीष्ट व्रत, दान और में, पौषीको ' अयोध्या ' में और माघीको ' प्रयाग ' में अभीष्ट व्रत, दान और यजन करनेसे कई गुना अधिक फल होता है ।

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Last Updated : January 02, 2002

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