पयोव्रत
( श्रीमद्भागवत ) -
यह व्रत फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदासे द्वादशीपर्यन्त बारह दिनमें पूर्ण होता है । इसके लिये गुरु - शुक्रादिका उदय और उत्तम मुहूर्त देखकर फाल्गुनी अमावस्याको वनमें जाकर ' त्वं देव्यादिवराहेण रसायाः स्थानमिच्छता । उदधृतासि नमस्तुभ्यं पाप्मानं मे प्रणाशय ॥' - इस मन्त्नसे जंगली शूकरकी खोदी हुई मिट्टीको शरीरमें लगाये और समीपके सरोवरमें जाकर शुद्ध स्त्रान करे । फिर गौके दूधकी खीर बनाकर दो विद्वान् ब्राह्मणोंको उसका भोजन कराये और स्वयं भी उसीका भोजन करे । दूसरे दिन ( फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदाको ) भगवानको गौके दूधसे स्त्रान कराकर हाथमें जल लेकर ' मम सकलगुणगणवरिष्ठमहत्वसम्पन्नायुष्मत्पुत्रप्राप्तिकामनया विष्णुप्रीतये पयोव्रतमहं करिष्ये । ' यह संकल्प करे । तदनन्तर सुवर्णके बने हुए हषीकेशभगवानका ' ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ' इस मन्त्नसे आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके - १`महापुरुषाय, २ सूक्ष्माय, ३ द्विशीष्णें, ४ शिवाय, ५ हिरण्यगर्भांय, ६ आदिदेवाय, ७ मरकतश्यामवपुषे, ८ त्रयीविद्यात्मने, ९ योगैश्वर्यशरीराय नमः - से भगवानको प्रणाम और पुष्पाञ्जलि अर्पण करके परिमित दूध एक बार पीये । इस प्रकार प्रतिपदासे द्वादशीपर्यन्त १२ दिनतक व्रत करके त्रयोदशीको विष्णुका यथाविधि पूजन करे । पञ्चामृतसे स्त्रान कराये और तेरह ब्राह्मणोंको गोदुग्धकी खीरका भोजन कराये । तदनन्तर सुपूजित मूर्ति भूमिके, सूर्यके, जलके या अग्निके अर्पण करके गुरुको दे और व्रत विसर्जन करके तेरहवें दिन स्वयं भी स्वल्पमात्रामें खीरका भोजन करे । यह व्रत पुत्रप्राप्तिकी इच्छा रखनेवाले अपुत्र स्त्री - पुरुषोंके करनेका है । देवमाता अदितिके उदरसे वामनभगवान इसी व्रतके प्रभावसे प्रकट हुए थे ।