शुक्लैकादशी
( ब्रह्माण्डपुराण ) - फाल्गुन शुक्ल एकादशी ' आमलकी ' कहलाती है । इस दिन आँवलेके समीप बैठकर * भगवानका पूजन करे । ब्राह्मणोंको दक्षिणा दे और कथा सुने । रात्रिमें जागरण करके दूसरे दिन पारण करे । इसकी कथाका सार यह हैं कि वैदेशिक नगरमें चैत्ररथ राजाके यहाँ एकादशीके व्रतका अत्याधिक प्रचार था । एक बार फाल्गुन शुक्ल एकादशीके दिन नगरके सम्पूर्ण नर - नारियोंको व्रताके महोत्सवमें मग्न देखकर कौतूहलवश एक व्याधा वहाँ आकर बैठ गया और भूखा - प्यासा दूसरे दिनतक वहीं बैठा रहा । इस प्रकार अकस्मात् ही व्रत विधि - विधान और निर्णय आदि चैत्रके व्रत - परिचयमें दिये गये हैं, वहाँ देखने चाहिये ।
* फाल्गुने मासि शुक्लायामेकादश्यां जनार्दनः ।
वसत्यामलकीवृक्षे लक्ष्म्या सह जगत्पत्तिः ॥
तत्र सम्पूज्य देवेशं शक्त्या कुर्यात् प्रदक्षिणाम् ।
उपोष्य विधिवत् कल्पं विष्णुलोके महीयते ॥ ( नृसिंहपरिचर्या )