वैराज n. महाभारत में निर्दिष्ट सात प्रमुख पितरों में एक (पितर देखिये) । बाकी छः पितरों के नाम निम्न थेः-- १. अग्निष्वात्त; २. सोंप; ३. गार्हपत्य ; ४. एकशृंग; ५. चतुर्वेद एवं ६. कल
[म. स. ११.१३३*] । ब्रह्मांड में इन्हें विरजस् नामक प्रजापति के पुत्र कहा गया है
[ब्रह्मांड. ३.७.२१२] । मत्स्य में इन्हें अमूर्त पितरों में से एक कहा गया है । प्रारंभ में ये योगी थे । वहाँ से योगभ्रष्ट होने पर, इन्हें सनातन ब्रह्मलोक में पुनः जन्म प्राप्त हुआ। वहाँ ब्रह्मा के एक दिन तक उसके साथ रहने पर, अगले कल्पारंभ में इन्हें ब्रह्मवादिन् के रूप में पुनः जन्म प्राप्त हुआ। इस जन्म में इन्हें अपने पूर्वजन्म का स्मरण हुआ, एवं ये पुनः एक बार योगाभ्यास में मग्न हुए। आगे चल कर इसी योगसाधना से इन्हें मुक्ति प्राप्त हुई। इनकी मानसकन्या का नाम मेना था, जो हिमवत् की पत्नी थी । ये पितर अत्यंत परोपकारी रहते है, एवं योगाभ्यास करनेवाले हर एक व्यक्ति को सहायता पहुँचाते है
[मत्स्य. १३.३-६] ।