महिषासुर n. एक असुर, जो मयासुर एवं रंभा का पुत्र था ।
महिषासुर n. इसका पिता रंभासुर बडा शंकरभक्त था, जिसने अपनी तपस्या से उसे प्रसन्न कर वरदान मॉंगा, ‘हे प्रभो, मैं निःसंतान हूँ, मुझे एक भी पुत्र नहीं है । अतएव मेरी इच्छा है कि, तुम मेरी पुत्र बनों’। शंकर ने ‘तथास्तु’ कहा । एक दिन मार्ग से जाते समय, रंभासुर को चित्रवर्ण की एक सुन्दर महिषी दिखी । तब उसने उसमें अपना वीर्य स्थापित किया, जिससे कालांतर में शंकरांश का बल लेकर महिषासुर उत्पन्न हुआ । महिषासुर ने देवी की आराधना कर के उसके भक्तों में शाश्वत स्थान प्राप्त किया ।
महिषासुर n. इसने तप से ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया, तथा वरदान प्राप्त किया कि, यह मनुष्य के हाथों से न मारा जाये । बाद को ब्रह्मदेव के वरदान की प्राप्त कर इसने तीनों लोकों का कष्ट देना आरंभ किया । तब देवी ने अष्टादशभुज रुप धारण कर इसका वध किया
[दे.भा.५.१६] ;
[मार्क.८०] ; पार्वती देखिये । एक बार शिकार करते-करते यह अरुणाचल पर्वत पर गया, जहॉं पार्वती तपस्या कर रही थी । वहॉं उसकी सौन्दर्यसुषमा दो देखकर यह उस पर मोहित हो गया, तथा एक वृद्ध अतिथि का रुप धारण कर, उससे तपस्या करने का कारण पूछॉं । तब पार्वती ने कहा, ‘मै परम बलवान् भगवान् शंकर का वरण करना चाहती हूँ, इसीसे तपस्या कर रही हूँ’। तब इसने कहा, ‘में भी बलवान हूँ, एवं चाहता हूँ कि तुम मेरा वरण करो’। तब पार्वती ने इसे युद्ध के लिए ललकारते हुए अपना बल प्रदर्शन करने के लिए कहा । महिषासुर ने पार्वती के साथ घोर युद्ध किया, किन्तु अन्त में उसके द्वारा यह मारा गया
[स्कंद.१.३,१०.११] ;
[शिव.उ.४६] । जिस स्थान पर देवी ने इसका वध किया था, वही स्थान सम्भवतः ‘देवीपुर तीर्थ’ है
[स्कंद.३.१.६-७] । महाभारत में, इसे महेश्वर द्वारा वर प्राप्त होने की चर्चा है
[म.अनु.१४.२१४] । एक बार इसने देवताओं को परास्त कर के रुद्र के रथ पर भी आक्रमण किया था
[म.व.२११.५७] । महाभारत के अनुसार, स्कंद.ने इसका वध किया था
[म.व.२२१.६६] ।