पांडय n. (सो. तुर्वसु.) दक्षिण भारत का एक राजवंश एवं लोकसमूह । इस वंश के राजा तुर्वसुवंश के जनापीड राजा के वंशज कहलाते थे । तुर्वसुवंश का मरुत्त राजा पुत्रहीन था । उसने पूरुवंशीय दुष्यंत राजा को गोद लिया, एवं इस तरह तुर्वसुवंश का स्वतंत्र अस्तित्त्व नष्ट करके, उसे पूरुवंश में शामिल कर लिया गया । किंतु पद्म के अनुसार, तुर्वसुवंश में आगे चल कर, दुष्कृत, शरुथ, जनापीड ये राजा उत्पन्न हुये । उनमें से जनापाद राजा को पांडयु, केरल, चोल्य एवं कुल्य नामक चार पुत्र थे । इन चारों पुत्रों ने (दक्षिण भारत में क्रमशः पांडय, केरळ, चोल्य एवं कुल्य कोल) राज्यों की स्थापना की
[वायु.९९.६] ।
पांडय II. n. एक पांडयवंशीय राजा । श्रीकृष्ण ने इसका वध किया
[म.द्रो.२२.१६] ।
पांडय III. n. पांडय राजा मलयध्वज का नामांतर । इसके पिता का वध श्रीकृष्ण ने किया (पांडय २. देखिये) । फिर अपने पिता के वध का बदला लेने के लिये, पांडयराज मलयध्वज ने भीष्म, द्रोण एवं कृप से अस्त्रविद्या प्राप्त की एवं यह कर्ण, अर्जुन, रुक्मि के समान शूर बना । यह श्रीकृष्ण की द्वारकानगरी पर आक्रमण करना चाहता था । किंतु इसके सुहृदों ने इसे इस साहस से परावृत्त किया एवं यह पांडवों का मित्र बना । यह दौपदीस्वयंवर में
[म.आ.१७७.१८१६] तथा युधिष्ठिर के राजसूर्य यज्ञ में
[म.स.४८.४७७] उपस्थित जा । भारतीय युद्ध में, यह पांडवों के पक्ष में शामिल था
[म.उ.१९.९] । इसके रथ पर सागर के चिह्र से युक्त ध्वजा फहराती थी एवं इसके रथ के अश्व चन्द्रकिरण के समान श्वेत थे । इसके अश्वों के उपर ‘वैदूर्यमणियों’ के जाली बिछायी थी ।
[म.द्रो.२४.१८३] । अंत में अश्वत्थामा ने इसका वध किया
[म.क.१५.३-४३] । महाभारत में इसके लिये निम्नलिखित नामांतर प्राप्त हैः-- (१) चित्रवाहन---यह मणलूर का नृप, एवं अर्जुन की पत्नी चित्रांगदा का पिता था
[म.आ.२०७.१३-१४] । (२) मलयध्वज पांडय---सहदेव ने अपने दक्षिण दिग्विजय में इसे जीता था
[म.स.परि.१.१५.६७] । (३) प्रवीर पांडय---यह पांडय देश का राजा था
[म.क.१५.१-२] ।
पांडय IV. n. विदर्भ देश का राजा । यह महान् शिवभक्त था । एक दिन प्रदोष के समय यह शिवपूजा कर रहा था । नगर के बाहरकुछ आवाज सुनाई देने पर, शिवपूजा वैसी ही अधूरी छोडकर यह बाहर आया । पश्चात् इसके राज्य पर हमला करने के लिये आर्य शत्रु के प्रधान का इसने वध किया । शत्रुवध का कार्य समाप्त कर यह घर वापस आया एवं शिव की पूजा वैसी ही अधूरी छोडकर इसने अन्नग्रहण किया । इस पाप के कारण, अगले जनम में इसे सत्यरथ नामक राजा का जन्म हुआ एवं शत्रु के हाथों इसकी अकाल मृत्यु हो गयी
[शिव.शत. ३१.४७-५५] ; सत्यरथ देखिये ।