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धौम्य

   { dhaumyḥ, dhaumya }
Script: Devanagari

धौम्य     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
DHAUMYA I   A hermit.
1) General information.
This hermit was the younger brother of Devala, a hermit. The Pāṇḍavas, who escaped from burning in the Lākṣā house, reached the banks of the Ganges when this hermit was performing penance in the holy tīrtha of Utkoca. Arjuna defeated Citraratha, a Gandharva. After that Citraratha and Arjuna became friends. The gandharva advised him that a priest was unavoidable and that the Pāṇḍavas should accept the hermit Dhaumya who was doing penance in the Utkocatīrtha as their priest. Accordingly the Pāṇḍavas accepted Dhaumya as their priest. From that day onwards in everything the Pāṇḍavas did, Dhaumya was their priest. [M.B. Ādi Parva, Chapter 182] .
2) Other details.
(1) After the Svayaṁvara of Pāñcālī, Dhaumya performed the marriage ceremony for each of the Pāṇḍavas from Dharmaputra to Sahadeva separately with Pāñcālī. [M.B. Ādi Parva, Chapter 197] .
(2) When sons were born to the Pāṇḍavas, Dhaumya performed the rites of investiture etc. with the Brahma string etc. [M.B. Ādi Parva, Chapter 220, Stanza 87] .
(3) Dhaumya was the chief priest who performed the rites of sacrifice at the Rājasūya of Yudhiṣṭhira. He anointed Yudhiṣṭhira as King. [M.B. Sabhā Parva, Chapter 53, Stanza 10] .
(4) When the Pāṇḍavas started for forest life, Dhaumya walked in front of them with Kuśa grass in his hands, singing Yamasāma and Rudrasāma songs. [M.B. Sabhā Parva, Chapter 80, Stanza 8] .
(5) Once Dhaumya talked about the attributes of the Sun and advised Dharmaputra to worship the Sun. [M.B. Vana Parva, Chapter 3] .
(6) In the forest Dhaumya rendered powerless the illusive and magical arts of Kirmīra, an asura (demon). [Mahābhārata, Vana parva, Chapter 11, Stanza 20] .
(7) Dhaumya described to Dharmaputra the importance of several holy tīrthas or Baths. [M.B. Vana Parva, Chapters 87 to 90] .
(8) On another occasion Dhaumya described to Dharmaputra the motions of the Sun and the Moon and the positions of Viṣṇu and Brahmā. [M.B. Vana Parva, Chapter 163] .
(9) When Jayadratha had stolen Pāñcālī, Dhaumya blamed him and tried to recover Pāñcālī. [M.B. Vana Parva, Chapter 238, Stanza 26] .
(10) Dhaumya advised the Pāṇḍavas how to preserve pseudonymity in the capital of Virāṭa. [M.B. Virāṭa Parva, Chapter 4] .
(11) When the Pāṇḍavas started their life incognito Dhaumya performed the rite of Agniṣṭoma and uttered the Veda mantras for their prosperity, recovery of kingdom and victory in the world etc. When they started Dhaumya took the fire with oblations and went to the country of Pāñcāla. [M.B. Virāṭa Parva, Chapter 4, Stanza 54] .
(12) After the bhārata battle, Dhaumya performed the funeral ceremonies, offerings etc. of the relatives of the Pāṇḍavas. [M.B. Strī Parva, Chapter 24] .
(13) After Dharmaputra was anointed King, Dhaumya disclosed to him the secrets of righteousness. [M.B. Anuśāsana Parva, Chapter 127, Stanza 15] .
DHAUMYA II   In the Purāṇas we see another hermit with the name Dhaumya. In [Mahābhārata, Anuśāsana Parva, Chapter 14, Stanza 112] , it is mentioned that this hermit was the brother and teacher of hermit Upamanyu. He had been keeping contact with Dyumatsena, the father of Satyavān. [M.B. Vana Parva, Chapter 298, Stanza 19] . Other names such as Ayodha Dhaumya, Āyodha Dhaumya, Apodhadhaumya, Āpodhadhaumya etc. are used for this Dhaumya, (For details see under Ayodhadhaumya).

धौम्य     

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See : धौम्य ऋषि

धौम्य     

धौम्य n.  देवल ऋषि का कनिष्ठ भ्राता, एवं पांडवों का पुरोहित । यह अपोद ऋषि का पुत्र था, एवं गंगानदी के तट पर, उत्कोचक तीर्थ में इसका आश्रम था [म.आ.१७४.६] । इसके पिता ने अन्नग्रहण वर्ज्य कर, केवल पानी पी कर ही सारा जीवन व्यतीत किया । उस कारण, उसे ‘अपोद’ नाम प्राप्त हुआ । अपोद ऋषि का पुत्र होने के कारण, धौम्य को ‘आपोद’ यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ [म.आ.३.१९] । इसे ‘अग्निवेश्य’ भी कहते ये [म.आश्व.६३.९] । चित्ररथ गंधर्व की मध्यस्थता के कारण, धौम्य ऋषि पांडवों का पुरोहित बन गया । लाक्षागृहदाह से बच कर, अर्जुन अपने भाईयों के साथ द्रोपदी स्वयंवर के लिये जा रहा था । उस वक्त, मार्ग में उसे चित्ररथ गंधर्व मिला । उसने अर्जुन से कहा, ‘पुरोहित के सिवा राजा ने कहीं भी नहीं जाना चाहिये । देवल मुनि का छोटा भाई धौम्य उत्कोचक तीर्थ पर तपश्चर्या कर रहा है । उसे तुम अपना पुरोहित बना लो’। फिर अर्जुन ने धौम्य से प्रार्थना कर, उसे अपना पुरोहित बना लिया [म.आ.१७४.६] । पांडवों का पौरोहित्य स्वीकारने के बाद, धौम्य ऋषि पांडवों के परिवार में रहने लगा [म.स.२.७] । पांडवो के घर के सारे धर्मकृत्य भी, इसे के हाथों से होने लगे । पांडव एवं द्रौपदी का विवाह तय होने पर, उनका विवाहकार्य इसीने संपन्न किया । उस कार्य के लिये, इसने वेदी पर प्रज्वलित अग्नि की स्थापना कर के, उस में मंत्रो द्वारा आहुती दी, एवं युधिष्टिर तथा द्रौपदी का गठबंधन कर दिया । पश्चात उन दोनों का पाणिग्रहण करा कर, उनसे अग्नि की परिक्रमा करवायी , एवं अन्य शास्त्रोक्त विधियों का अनुष्ठान करवाया । इसी प्रकार क्रमशः सभी पांडवों का विवाह इसने द्रौपदी के साथ कराया [म.आ.१९०.१०-१२] । पांडवो के सारे पुत्रों के उपनयनादि संस्कार धौम्य ने ही कराये थे [म.आदि.२२०.८७] । युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में धौम्य ‘होता’ बना था [म.स.३०-३५] । युधिष्ठिर को ‘अर्धराज्याभिषेक’ भी धौम्य ने ही किया था [म.स.४९.१०] । पांडवों के वनगमन के समय, महर्षि धौम्य हाथ में कुश ले कर, यमसाम एवं रुद्रसाम का गान करता हुआ, वनगमन के लिये उद्युक्त हुआ [म.स.७१.७] । इसे उस अवस्था में देख कर, युधिष्ठिर को अत्यंत दुख हुआ । वह बोला, ‘आप वन में न आयें । मैं भला वहॉं आप को क्या दे सकता हूँ?’ फिर धौम्य ने युधिष्ठिर को सूर्यापासना के लिये प्रेरणा दी [म.व.३.४-१२] , एवं उसे सूर्य के ‘अष्टत्तरशत’ नामों का वर्णन भीं कहा, ‘हे राजन्, तुम घबराओं नहीं । तुम सूर्य का अनुष्ठान करो । सूर्य प्रसन्न हो कर, तुम्हारी चिन्ता दूर करेगा’। धौम्य के कथानानुसार युधिष्ठिर ने सूर्य की स्तुति की । उससे प्रसन्न हो कर, सूर्यनारायण ने उसे ‘अक्षयपात्र’ प्रदान किया, एवं कहा, ‘यह पात्र तुम द्रौपदी के पास दे दो । उससे वनवास में तुम्हे अन्न की कमी कभी भी महसूस नहीं होगी’। फिर धर्म ने वह पात्र द्रौपदी के पास दे दिया [म.व.४] ; द्रौपदी देखिये । पांडवों के वनवासगमन के बाद, अर्जुन अस्त्रप्राप्ति के हेतु इन्द्रलोक चला गया । अर्जुन के जाने से युधिष्ठिर अत्यंत चिंताग्रस्त हो गया । फिर धौम्य ने उसे भिन्नभिन्न, तीर्थो, देशों, पर्वतों, एवं प्रदेशों के वर्णन बताये, एवं कहा, ‘तुम तीर्थयात्रा करो’। उससे तुम्हारे अंतःकरण को शांति मिलेगी’[म.व.८४-८८] । वनवास में जयद्रथ राजा ने द्रौपदी का अपहरण करने का प्रयत्न किया । उस वक्त धौम्य ने जयद्रथ को फटकारा, एवं द्रौपदी की रक्षा करने का प्रयत्न किया [म.व.२५२ २५-२६] । पांडवों के वनवास के बारह वर्ष के काल में, धौम्य ऋषि अखंड उनके साथ ही था । पांडवों के अग्निहोत्र रक्षण की जिम्मावारी धौम्य ऋषि पर थी । वह इसने अच्छी तरह से निभायी [म.व.५.१३९] । वनवास समाप्त हो कर अज्ञातवास प्रारंभ होने पर, युधिष्ठिर ने बडे ही दुख से धौम्य से कहा, ‘अज्ञातवास के काल में हम आपके साथ न रहे सकेंगे । इसलिये हमें बिदा कीजिये’। उस समय धौम्य ने युधिष्ठिर को अत्यंत मौल्यवान् उपदेश किया, एवं युधिष्ठिर की सांत्वना की । धौम्य ने कहा, ‘भाग्यचक्र की उलटी तेढी गती से देव भी बच न सके, फिर पांडव तो मानव ही है’। अज्ञातवास काल में विराट के राजदरबार में किस तरह रहना चाहिये, इसका भी बहुमूल्य उपदेश धौम्य ने युधिष्ठिर को किया [म.वि.४.६-४३] । फिर पांडवों के अग्निहोत्र का अग्नि प्रज्वलित कर, धौम्य ने उनकी, समृद्धि, वृद्धि, राज्यलाभ तथा भूलोक-विजय के लिये, वेदमंत्र पढ कर हवन किया । जब पांडव अज्ञातवास के लिये, चले गये, तब उनका अग्निहोत्र का अग्नि साथ ले कर, धौम्य पांचाल देश चला गया [म.वि.४.५४-५७] । भारतीय युद्ध में, भीष्मनिर्याण के समय, धौम्य ऋषि युधिष्ठिर के साथ उसे मिलने गया था । युद्ध समाप्त होने पर, श्रीकृष्ण ने पांडवों से बिदा ली । उस समय भी धौम्य उपस्थित था [भा.१.९] । भारतीय युद्ध में मारे गये पांडवपक्ष के संबंधी जनों का दाहकर्म धौम्य ने ही किया था [म.स्त्री.२६.२७] । युधिष्ठिर राजगद्दी पर बैठने के पश्चात्, उसने धौम्य की धार्मिक कार्यो के लिये नियुक्ति की [म.शां.४१.१४] । धृतराष्ट्र, गांधारी एवं कुंती वन में जाने के बाद, एक बार युधिष्ठिर युयुत्सु के साथ उन्हे मिलने गया । उस वक्त हस्तिनापुर की व्यवस्था युधिष्ठिर ने धौम्य पर सौंपी थी [म.आश्र.३०.१५] । धौम्य ने धर्म का रहस्य युधिष्ठिर को बताया था [म.अनु.१९९] । धर्मरहस्य वर्णन करते समय, धौम्य कहता हैं, ‘टूटे हुएँ बर्तन, टूटी खाटें, मुगियॉं, कुत्ते आदि को घर में रखना, एवं घर में वृक्ष लगाना अप्रशस्त है । फूटे बर्तनों में कलि वस करता है, टूटी खाट में दुर्दशा रहती है, तथा वृक्षों के आसपास जंतु रहते हैं । इसलिये उन सब से बचना चाहिये’। धौम्य ने ‘धौम्यस्मृति’ नामक एक ग्रंथ की रचना भी की थी (C.C)|
धौम्य II. n.  एक ऋषि । व्याघ्रपाद ऋषि के दो पुत्रों में से यह एक था । इसके ज्येष्ठ भाई का नाम उपमन्यु था [म.अनु.४५.९६. कुं.] । हस्तिनापुर के मार्ग में श्रीकृष्ण से इसकी भेट हुई थी [म.उ.३८८] । सत्यवान का पिता द्युमत्सेन अपने प्रिय पुत्र तथा स्नुषा को ढूँढते-ढूँढते इस ऋषि के आश्रम में आया था । फिर इसने उसे भविष्य बताया, ‘तुम्हारा पुत्र शीघ्र ही स्नुषा के साथ जीवित वापस अयोगा’[म.व.२८२.१९]
धौम्य III. n.  एक मधुयमाध्वर्यु।

धौम्य     

कोंकणी (Konkani) WN | Konkani  Konkani
See : धौम्य रुशी

धौम्य     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
See : धौम्य ऋषी

धौम्य     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
धौम्य  m. m. (patr.fr.धूमg.गर्गा-दि) N. of an ancient ऋषि, [MBh.] ; [Hariv.] ; [Pur.]
of a son of व्याघ्र-पाद, [MBh.]
of a younger brother of देवल and family priest of the पाण्डवs, ib.
of a pupil of वाल्मीकि, [R.]
of sev. authors, [Cat.]

धौम्य     

धौम्यः [dhaumyḥ]  N. N. of an ancient Ṛiṣi; the family priest of the Pāṇḍavas.

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