पालीव्रत
( भविष्यपुराण ) -
भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशीको चारों वर्णकी कोई भी कुलवधू किसी जलपूर्ण बड़े तालाब आदिपर जाकर एक चौकीपर अक्षतादिका मण्डल बनाकर उसपर वरुणकी मूर्ति या वारुण यन्त्र लिखे । फिर उसका गन्ध, पुष्पादिसे पूजन करके
' वरुणाय नमस्तुभ्यं नमस्ते यादसां पते । अपां पते नमस्तुभयं रसानां पतये नमः ॥'
से अर्घ्य दे और
' मा क्लेदं मा च दौर्गन्ध्यं वैरस्यं मा मुखेऽस्तु मे । वरुणो वारुणीभर्ता वरदोऽस्तु सदा मम ॥'
से प्रार्थना करके ब्राह्मणोंको भोजन करावे और अग्निपक्क अन्नका स्वयं भोजन करे ।