शुक्लैकादशी
( ब्रह्माण्डपुराण ) -
भाद्रपद शुक्ल ' पद्मा ' एकादशीको प्रातःस्त्रानादिके अनन्तर भगवानका यथाविधि पूजन करके उपवास करे और रात्रिके समय हरिस्मरणसहित जागरण करके दूसरे दिन पूर्वाह्णमें पारणा करे । ......... यह स्मरण रहे कि प्रभातके समय यदि श्रवण नक्षत्रके मध्यभागकी ( लगभग २० ) घड़ीका अंश हो तो उसमें पारणा न करे । यह भी स्मरण रहे कि मध्याह्नसे पहले श्रवणका मध्य अंश न उतरे तो जल पीकर पारणा करे । ...... प्राचीन कालमें सूर्यवंशके चक्रवर्ती मान्धाताने आदेशसे इसी ' पद्मा एकादशी ' के व्रतका अनुष्ठान किया था, उससे मान्धाताके राज्यमें सर्वत्र सदैव अनुकूल वर्षा होती रही । ..... यदि इस दिन श्रवण नक्षत्र हो तो यही ' विजया एकादशी ' होती है । इसके व्रतसे सब आवश्यक होता है । व्रतीको चाहिये कि भाद्रपद शुक्ल एकादशीको प्रातःस्त्रानादि करके भगवान् वामनजीकी सुवर्णकी मूर्ति बनवावे और ' मत्स्य, कूर्म, वाराह ' आदिके नामोच्चारण - सहित गन्ध - पुष्पादि सभी उपचारोंसे उसका यथाविधि पूजन करे । दिनभर उपवास रखे और रात्रिमें जागरण करके दूसरे दिन फिर उसका पूजन करके उपस्थित देय द्रव्यादि ब्राह्मणोंको देकर उनको भोजन करावे और फिर स्वयं भोजन करके व्रत समाप्त करे ।