आपन रूप परखिये आपै ॥
निज नयनन ही निज मुख दीखत अपनो सुख-दुख आपुई ब्यापै ।
अपनी गति बनै आपु बनाये जाड़ जात निज तन तप तापै ।
निज करसों निज आसुँ पोंछिये का सुझाय सुइ करसों छापै ।
तटपै बसि प्रशांत जल निरखहु का क्षति-लाभ सिंधु तल मापै ॥
गहत न लहत बृथा दिन खोवत कथत-मथत ही शास्त्र कलापै ।
'केशी' आत्म-प्रतीति फुरति है रामनाम अब्याहत जापै ॥