रुपरसिक, मोहन, मनोज-मन-हरन, सकल-गुन-गरबीले ।
छैल-छबीले चपललोचन चकोर चित चटकीले ॥टेक॥
रतन-जटित सिर मुकुट लटक रहि सिमट स्याम लट घुँघरारी ।
बाल बिहारी कन्हैयालाल, चतुर, तेरी बलिहारी ॥
लोलक मोती कान कपोलन झलक बनी निरमल प्यारी ।
ज्योति उज्यारी, हमैं हरबार दरस दै गिरिधारी ॥
बिज्जुछटा-सी दंतछटा मुख देखि सरदससि सरमीले ।
छैल-छबीले चपललोचन चकोर चित चटकीले ॥
मंद हसन, मृदु बचन तोतले, बय किसोर भोली-भाली ।
करत चोचले, अमोलक अधर पीक रच रही लाली ॥
फूल गुलाब चिबुक सुंदरता, रुचिर कंठछबि बनमाली ।
कर सरोजमें,बुंद मेहँदी अति अमंद है प्रतिपाली ॥
फूलछरी-सी नरम कमर करधनीसब्द हैं तुरसीले ।
छैल-छबीले चपललोचन चकोर चित चटकीले ॥
झँगुली झीन जरीपट कछनी, स्यामल गात सुहात भले ।
चाल निराली, चरन कोमल पंकजके पात भले ॥
पग नूपुर झनकार परम उत्तम जसुमतिके तात भले ।
संग सखनके, जमुनतट गो-बछरान चरात भले ॥
ब्रज-जुवतिनकौ प्रेम निरखि कर घर-घर माखन गटकीले ।
छैल-छबीले, चपललोचन चकोर चित चटकीले ॥
गावैं बाग बिलास चरित हरि सरद-रैन-रस रास करैं ।
मुनिजन मोहैं, कृष्ण कंसादिक खल-दल नास करैं ॥
गिरिधारी महराज सदा श्रीब्रजबृंदाबन बास करैं ।
हरिचरित्रकों स्त्रवन सुन-सुन करि अति अभिलाष करैं ॥
हाथ जोरि करि करे बीनती ’नारायन’ दिल दरदीले ।
छैल-छबीले चपललोचन चकोर चित चटकीले ॥