हिन्दी पद - पदे ९१ से ९५
संत नामदेवांनी भक्ति-गीते आणि अभंगांची रचना करून समस्त जनता-जनार्दनाला समता आणि प्रभु-भक्तिची शिकवण दिली.
९१.
कोई बोले निरवा कोई बोले दूर । जलकी मछरी चले खजूर ॥१॥
काहेरे बकवा दलायो । जिन हर पायो तिने छपायो ॥२॥
पंडत होके बेद बखाने । मूरख नामदेव रामरामही जाने ॥३॥
कानको कुलंक रह्यो रामनाम लेत ही । भयो पतत पवित्न भये । राम कहीतही ॥४॥
राम संग नामदेव जिनको प्रत्यय आयी । एकादशीव्रत रहे काहेको तिरथ जाई ॥५॥
भणत नामदेव सुकृत सुमत भये । गुरुमत राम कहोबेन कोन बैकुंठ गये ॥६॥
९२.
दर बरागने मुह बसकिनी । पंच हुकामिट नावो ।
सतर दोय भरे अमृत सर । बिखको मार कठावो ॥१॥
पाछे बहुरन आवन पावो । अमृत बानी घटते उचरो आत्मको समझावो ॥२॥
बजर कुठार मोहे हरी छीना । मिनत लग पावो । संतनके हम उलटे सेवक । भगत न ते डर पावो ॥३॥
हितकर भगत करे जो जन तिन भव सगल चुकाई ये । कहत नामदेव बाहर क्या भरमो । इत संजम हर पाईये ॥४॥
९३.
गहेरी करके बिन खुदाई । उपर मंडप छाये मारकंडे ते कवन काई ॥१॥
जीन तीर्णधर मूड बुलाए । हमरो कर्ता राम सनेही । काहेरे नर गर्व करत है । बिनस जाय कूठी देही ॥२॥
मेरी मेरी कयरो करते दूर जो धनसें भाई । बारह जो जन छत्र चलेथा । देही गिरजन खाई ॥३॥
सब सोनेकी लंका होती । रावणसे अदकाई । कहाभयो दरबाधे हातीं खीनमे भई पराई ॥४॥
दुर्वासासों करत ठगोरी जादव यह फल पाये । किरपा करी जिन अपने उपर । नामदेव हर गन गाये ॥५॥
९४.
अन मडका मंदल बाजे । बिन श्रवण घर हर जागे ॥१॥
बादल बिन बरखा होई । तो तद बिचारे कोई ॥२॥
मोको मिलीयो राम सनेही । जहे निली है देहसो देही ॥३॥
मिल पारस कंचन होया । मुक मनसा रतन परोया ॥४॥
निजभाव भया परम भागा । गुरु पुछे मनपती यागा ॥५॥
जल पितर कुंभ समान्य । सब राम एककर जान्या ॥६॥
गुरू चेले है मनमान्या । जीन नाम तत पछाना ॥७॥
९५.
पाडपडोसन पुछले नामा । काप है छानछवाई हो । तो पै दुगुणी मजुरी देउ । मोको बेडी देउ बताई हो ॥१॥
रिबाई बेडी देनन जाई । देख बेडी रह्यो समाई ॥ध्रु०॥
हमारे बेडी प्राण धारा बेडी प्रत । मजुरी मागे जो कोई छान छवाने हो ।
लोक कुटुंब सब हूते तोरे । तो आपन बेडी आवे हो ॥२॥
ऐसा बर्णन साकू । सब अंतर सब ठायी हो ॥
गुंगे महा अमृत रस चाख्या । पुछे कहन न जाई ओ ॥३॥
बेडीके गुण सुनरी बाई । जलद बाण ध्रुव थाप्यो हो ।
नामेके स्वामी सिया बहोरी लंका बिबिखन आप्यो हो ॥४॥
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Last Updated : November 11, 2016
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