हिन्दी पद - पदे ७६ से ८०

संत नामदेवांनी भक्ति-गीते आणि अभंगांची रचना करून समस्त जनता-जनार्दनाला समता आणि प्रभु-भक्तिची शिकवण दिली.


७६.
साहेब संकट व्हैस सेवक भजे । चिरकाल न जीवे दौ कुल ह्से तेरी भक्ति न छोडूं भावसे भजे ॥१॥
चरन कमा मेरे हिया वसे जैसे अपने धनीं प्राणी मरण मांडे । तैसे संतजन राम नाम न छांडे ॥२॥
गंगा गया गोदावरी संसारके कामा । नारायण सो प्रसन्न होये ता सेवक नामा ॥३॥
७७.
जो गुरुदेवत मिले मुरार । जो गुरुदेवत उतरे पार ॥१॥
जो गुरुदेवत वैकुंठ तरे । जो गुरुदेवत जीवन मरे ॥२॥
सत सत सत गुरुदेव । झुट झुट झुट आन सब सेव ॥३॥
जो गुरुदेवत नाम द्दढावे । जो गुरुदेव न दहदिस धावे ॥४॥
जो गुरुदेव पंचते दूर । जो गुरुदेव न मरबो झूर ॥५॥
जो गुरुदेवत अमृतावाणी । जो गुरुदेवत अकथ कहाणी ॥६॥
जो गुरुदेवा अमृत देह । जो गुरुदेव नाम जप लेह ॥७॥
जो गुरुदेव भुवनत्रय सुझे । जो गुरुदेव उच पद बुझे ॥८॥
जो गुरुदेवत सिस आकास । जो गुरुदेव सदासा वास ॥९॥
जो गुरुदेव सदा बैरागी । जो गुरुदेव परनिंदा त्यागी ॥१०॥
जो गुरुदेव बुरा भला एक । जो गुरुदेव ललाटे लेख । जो गुरुदेव कंद नही हीरे ॥११॥
जो गुरुदेव देहुरा फीरे ॥१२॥
जो गुरुदेवत छापर छाई । जो गुरुदेव सहज निकसाई ॥१३॥
जो गुरुदेवत आठसट नाया । जो गुरुदेवत चक्र लगाया ॥१४॥
जो गुरुदेव द्वाद्श सेवा । जो गुरुदेव सवे दु:ख मेवा ॥१५॥
जो गुरुदेवत संशय तुटे । जो गुरु देवत जमते झुटे ॥१६॥
जो गुरुदेवत भवजल तरे । जो गुरुदेवत जन्म न मरे ॥१७॥
जो गुरुदेव अठदस विवहार जो गुरुदेव उतारे भार ॥१८॥
विन गुरुदेव आवर नही आई । नामदेव गुरुकी सर नाई ॥१९॥
७८.
संटा मरका जाय पुकारे । पढे नही हमही पच हारे ॥१॥
राम कहे कर जाल बजारे चटीया सवे बगारे ॥२॥
राम नाम जप गोकरे । हिरदे हरजीको स्मरण धरे ॥३॥
वसुधा वसकीनी सब राजे विनती करे पट रानी । पुत प्रर्‍हादका कही नही माने तिन तो और ठानीं ॥४॥
दुष्ट सभ भिल मंत्र उपाया करस है औद घनेरी । गिरतर जल ज्वाला भय राख्यो राजाराम माया फेरी ॥५॥
काड खड्ग काल अभय कोण्ये मोह बतावो जो तोह राखे । पीत पीतांबर त्रिभुवन धनी स्तंभ माह हर भाखे ॥६॥
हरनाकस जीन नखो बिदार्‍यो सुर नर किये सनाथा  । काहे नामदेव हम नरहर ध्याते । राम अभयपद दाता ॥७॥
७९.
घरकी नार त्यागे अंधा । परनारीसे घाले धंदा ॥१॥
जैसे सिंबल देख सुवा बिगसाना । अंतकी बार मुवाल पटना ॥२॥
पापीका घर अग्नीमाह । जलत रहे मिटवे कबना ॥३॥
हरकी भक्त न देखे जाय । मारग छोड अमारग पाय ॥४॥
भुलोभूला आवे जाय । अमृत डार लादविस खाय ॥५॥
ज्यौन वेस्वाके परे अखारा । कापड पहर करे शृंगारा ॥६॥
पुरे ताल  निहाले सास । वाके गले जमका है फास ॥७॥
जाके मस्तक लिखो कर्मा । सो भज पर है गुरुकी शरणा ॥८॥
कहत नामदेव यह बिचार इनविद संतो उतरो पार ॥९॥
८०.
जैसी भुखे प्रति अनाज । तृखावत जलसे ती काज ॥१॥
जैसी मूढ कुटुंब परायण । तैसी नामें प्रीत नारायण ॥२॥
जैसी पर पुरखा रत नारी ॥३॥
लोभी नर धनका हितकारी । कामी पुरखा कामिनी प्यारी । ऐसी नामीं प्रीत मुरारी ॥४॥
साई प्रीत जे आभलाये । गुरु प्रसादी दुधाजाये ॥५॥
कबहून तुटस रह्या समाये । नामें चितलाया सचनाये ॥६॥
जैसी प्रीत बारक आरमाता । तैसा हेरसती मनराता ॥७॥
परनवे नामदेव लागी प्रीत । गोविंद बसे हमारे चित्त ॥८॥


Last Updated : November 11, 2016

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