हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|संत नामदेव रचित हिन्दी पदे| पदे ७६ से ८० संत नामदेव रचित हिन्दी पदे पदे १ से ५ पद ६ पदे ७ से १० पदे ११ से १५ पदे १६ से २० पदे २१ से २२ पदे २३ से २५ पदे २६ से ३० पदे ३१ से ३५ पदे ३६ से ४० पदे ४१ से ४५ पदे ४६ से ५० पदे ५१ से ५५ पदे ५६ से ६० पदे ६१ से ६५ पदे ६६ से ७० पदे ७१ से ७५ पदे ७६ से ८० पदे ८१ से ८५ पदे ८६ से ९० पदे ९१ से ९५ पदे ९६ से ९९ हिन्दी पद - पदे ७६ से ८० संत नामदेवांनी भक्ति-गीते आणि अभंगांची रचना करून समस्त जनता-जनार्दनाला समता आणि प्रभु-भक्तिची शिकवण दिली. Tags : namdevpadनामदेवपदहिन्दी पदे ७६ से ८० Translation - भाषांतर ७६. साहेब संकट व्हैस सेवक भजे । चिरकाल न जीवे दौ कुल ह्से तेरी भक्ति न छोडूं भावसे भजे ॥१॥चरन कमा मेरे हिया वसे जैसे अपने धनीं प्राणी मरण मांडे । तैसे संतजन राम नाम न छांडे ॥२॥गंगा गया गोदावरी संसारके कामा । नारायण सो प्रसन्न होये ता सेवक नामा ॥३॥७७. जो गुरुदेवत मिले मुरार । जो गुरुदेवत उतरे पार ॥१॥जो गुरुदेवत वैकुंठ तरे । जो गुरुदेवत जीवन मरे ॥२॥सत सत सत गुरुदेव । झुट झुट झुट आन सब सेव ॥३॥जो गुरुदेवत नाम द्दढावे । जो गुरुदेव न दहदिस धावे ॥४॥जो गुरुदेव पंचते दूर । जो गुरुदेव न मरबो झूर ॥५॥जो गुरुदेवत अमृतावाणी । जो गुरुदेवत अकथ कहाणी ॥६॥जो गुरुदेवा अमृत देह । जो गुरुदेव नाम जप लेह ॥७॥जो गुरुदेव भुवनत्रय सुझे । जो गुरुदेव उच पद बुझे ॥८॥जो गुरुदेवत सिस आकास । जो गुरुदेव सदासा वास ॥९॥जो गुरुदेव सदा बैरागी । जो गुरुदेव परनिंदा त्यागी ॥१०॥जो गुरुदेव बुरा भला एक । जो गुरुदेव ललाटे लेख । जो गुरुदेव कंद नही हीरे ॥११॥जो गुरुदेव देहुरा फीरे ॥१२॥जो गुरुदेवत छापर छाई । जो गुरुदेव सहज निकसाई ॥१३॥जो गुरुदेवत आठसट नाया । जो गुरुदेवत चक्र लगाया ॥१४॥जो गुरुदेव द्वाद्श सेवा । जो गुरुदेव सवे दु:ख मेवा ॥१५॥जो गुरुदेवत संशय तुटे । जो गुरु देवत जमते झुटे ॥१६॥जो गुरुदेवत भवजल तरे । जो गुरुदेवत जन्म न मरे ॥१७॥जो गुरुदेव अठदस विवहार जो गुरुदेव उतारे भार ॥१८॥विन गुरुदेव आवर नही आई । नामदेव गुरुकी सर नाई ॥१९॥७८. संटा मरका जाय पुकारे । पढे नही हमही पच हारे ॥१॥राम कहे कर जाल बजारे चटीया सवे बगारे ॥२॥राम नाम जप गोकरे । हिरदे हरजीको स्मरण धरे ॥३॥वसुधा वसकीनी सब राजे विनती करे पट रानी । पुत प्रर्हादका कही नही माने तिन तो और ठानीं ॥४॥दुष्ट सभ भिल मंत्र उपाया करस है औद घनेरी । गिरतर जल ज्वाला भय राख्यो राजाराम माया फेरी ॥५॥काड खड्ग काल अभय कोण्ये मोह बतावो जो तोह राखे । पीत पीतांबर त्रिभुवन धनी स्तंभ माह हर भाखे ॥६॥हरनाकस जीन नखो बिदार्यो सुर नर किये सनाथा । काहे नामदेव हम नरहर ध्याते । राम अभयपद दाता ॥७॥७९. घरकी नार त्यागे अंधा । परनारीसे घाले धंदा ॥१॥जैसे सिंबल देख सुवा बिगसाना । अंतकी बार मुवाल पटना ॥२॥पापीका घर अग्नीमाह । जलत रहे मिटवे कबना ॥३॥हरकी भक्त न देखे जाय । मारग छोड अमारग पाय ॥४॥भुलोभूला आवे जाय । अमृत डार लादविस खाय ॥५॥ज्यौन वेस्वाके परे अखारा । कापड पहर करे शृंगारा ॥६॥पुरे ताल निहाले सास । वाके गले जमका है फास ॥७॥जाके मस्तक लिखो कर्मा । सो भज पर है गुरुकी शरणा ॥८॥कहत नामदेव यह बिचार इनविद संतो उतरो पार ॥९॥८०. जैसी भुखे प्रति अनाज । तृखावत जलसे ती काज ॥१॥जैसी मूढ कुटुंब परायण । तैसी नामें प्रीत नारायण ॥२॥जैसी पर पुरखा रत नारी ॥३॥लोभी नर धनका हितकारी । कामी पुरखा कामिनी प्यारी । ऐसी नामीं प्रीत मुरारी ॥४॥साई प्रीत जे आभलाये । गुरु प्रसादी दुधाजाये ॥५॥कबहून तुटस रह्या समाये । नामें चितलाया सचनाये ॥६॥जैसी प्रीत बारक आरमाता । तैसा हेरसती मनराता ॥७॥परनवे नामदेव लागी प्रीत । गोविंद बसे हमारे चित्त ॥८॥ Last Updated : November 11, 2016 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP