हिन्दी पद - पदे ३१ से ३५

संत नामदेवजीने हिन्दी में भी बहुत सुंदर और भक्तिपूर्ण रचनायें की है ।


३१.
साई मेरो रीझई साची । दडे कपटीन जाई राची ॥१॥
कोई बहुगावे कोई बहु नाचे । जब लग नहीं हीरदे साचे ॥२॥
अनेक सीगारे बहु कामनी । नहीं न पीव मनीं भावे भामिनी ॥३॥
पतीवरता पतीहीकु जाने । नामदेव कहे हरि नहींकी माने ॥४॥
३२.
रतन परखु नीरारे । मुलमा मही हीरारे ॥ध्रु०॥
संख पारखु नीर खीरा जोई । बैरागर क्या खोटा होई ॥१॥
कालकुष्ट बीख बाधो गाठी । कहां भयो नही खायो वाटी ॥२॥
खायो बिख किन्हो बिस्तार । नामदेव भयो हरि गरुड बार ॥३॥
३३.
कलंक रहो रामनाम लेतही । पतीत पावन भये राम कहतही ॥१॥
राम संगीना नामदेव जीनहु प्रतीही आई । एका दशी व्रत करे काहेकु तीर जाई ॥२॥
भगत नामदेव सुमती सुकृत आई । राम कहत जन कोन बैकुंठ जाई ॥३॥
३४.
रामनाम नरहरि श्रीबनवारी ।  सेइथें निरंतर चरण मुरारी ॥१॥
गुरुको सबद बैकुंठनी सरणी । हीरदे प्रीयाग प्रेम रस बहनी ॥२॥
ज्या कारणें त्निभुवन फीर आय । सो निधान घट भीतरी पाय ॥३॥
नामदेव कहे कहु आय न जाय । अपनो राम घरीं बैठे गाय ॥४॥
३५.
भले बिरजे लंबकनाथ ॥ध्रु०॥
धरणी पाय स्वर्गलोंग माथ । योजन भरके हाथ ॥१॥
शिव सनकादिक  पार न पावे । अनगन सखा बिराजत साथ ॥२॥
नामदेवके आपही स्वामी । कीजे मोही सनाथ ॥३॥

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Last Updated : November 11, 2016

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