सरमा n. विभीषण की पत्नी, जो ऋषभ पर्वत पर निवास करनेवाले शैलूष नामक गंधर्व की कन्या थी
[वा. रा. उ. १२.२४-२७] ।
सरमा n. मानससरोवर के तट पर इसका जन्म हुआ। इसके जन्म के समय सरोवर में बाढ आने के कारण, उसका पानी लगातार बढ़ रहा था । उस समय इसकी माता ने घबरा कर बढते हुए पानी से प्रार्थना की, ‘सर मा’ (आगे मत बढना) इसकी माता की उपर्युक्त प्रार्थना के कारण, सरोवर का पानी बढ़ना बंद हुआ। इस कारण, अपनी नवजात कन्या का नाम उसने ‘सरमा’ ही रख दिया ।
सरमा n. रावण के द्वारा सीता का हरण किये जाने पर, उसके देखभाल का कार्य अशोकवन में इस पर ही सौंपा गया था । यह शुरू से ही सीता से सहानुभूति रखती थी । इस कारण यह सीता को रावण के सारे षड्यंत्र समझाकर उसे सांत्वना देती थी । इसी सांत्वना से सीता का भय कम होता था, एवं इसका धीरज बँधा जाता था (विभीषण देखिये) । पद्म के अनुसार, विभीषण के राज्यकाल में राम एवं सीता पुनः एकबार लंका गये थे, जिस समय उन्होंनें लंका में स्थित वामनमंदिर का उद्घाटन किया था । अपनी लंका भेट में सीता ने बड़े ही सौहाद से इसकी पूछताछ की थी
[पद्म. सृ. ३८] ।
सरमा (देवशुनी) n. देवलोक की एक कृतिया, जो इंद्र की दूती मानी जाती थी । यम के श्याम एवं शवल नामक दो कुत्ते इसीके ही पुत्र थे, जिस कारण वे ‘सारमेय’ (सरमा के पुत्र) नाम से सुविख्यात थे । संसार के समस्त ‘सारमेय’ (कुत्ते) भी इसीके ही संतान माने जाते हैं।
सरमा (देवशुनी) n. ऋग्वेद में इंद्र के दूत के रूप में इसका निर्देश प्राप्त है
[ऋ. १०.१०८] । यद्यपि ऋग्वेद में कहीं भी इसे स्पष्ट रूप से कुतिया नहीं कहा गया है, फिर भी उत्तरकालीन वैदिक साहित्य में, एवं यास्क के ‘निरुक्त’ में इसे ‘देवों की कुतिया’ (देवशुनी) ही माना गया है ।
सरमा (देवशुनी) n. पणि नामक कृपण लोगों का धन ढूँढ़ निकालने के लिए इंद्र ने अपने दूत एवं गुप्तचर सरमा को पणियों के निवासस्थान में भेजा था
[ऋ. १०.१०८. १-२] । पणियों ने वैदिक ऋत्विजों की गायों को पकड़ कर, उन्हें रसा नामक नदी के तट पर स्थित कंदरों में छिपा रखा था । सरमा ने उन गायों का पता लगाया, एवं इंद्र के दूत के नाते उनकी माँग की। किंन्तु उन्हें देने से इन्कार कर, पणियों ने सरमा को कैद कर दिया । अन्त में इन्द्र ने सरमा की एवं पणियों के द्वारा बन्दी की गयी गायों की मुक्तता की। इंद्र के दूत के नाते इसका पणियों से किया संवाद ऋग्वेद में ‘सरमा-पणि संवाद’ नाम से प्राप्त है
[ऋ. १०८.२, ४, ६, ८, १०, ११] । बृहद्देवता में भी इस संवाद का निर्देश प्राप्त है
[बृहद्दे. ८.२४.३६] । उत्तरकालीन वैदिक साहित्य में भी सरमा-पणि कथा अधिक विस्तृत स्वरूप में दी गयी है ।
सरमा (देवशुनी) n. इस साहित्य में इसे कश्यप एवं क्रोधा की कन्या कहा गया है
[ब्रह्मांड. ३.७.३१२] । यह इंद्र की दूती थी, एवं सारे दानव इससे डरते थे
[भा. ५.२४.३०] । एक बार इसका पुत्र जनमेजय के सर्पसत्र में गया, जहाँ जनभेजय के बांधवों ने उसे खूब पीटा, एवं यज्ञभूमि से भगा दिया । अपने पीट गये पुत्र के दुःख से अत्यधिक दुःखी हो कर, इसने जनमेजय को शाप दिया, ‘तुम एवं तुम्हारे सर्पसत्र पर अनेकानेक आपत्तियाँ आ गिरेंगी’
[म. आ. ३.१-८] । आगे चल कर इसकी यह शापवाणी सही सिद्ध हुई, एवं जनयेजय का सर्पसत्र आस्तीक ऋषि के द्वारा बंद किया गया ।
सरमा II. n. कश्यप ऋषि की पत्नी, जो दक्ष प्रजापति एवं आसिक्री की कन्या थी । संसार के समस्त हिंस्त्र पशु इसीके ही संतान माने जाते है
[भा. ६.६.२६] ।